Thursday, December 1, 2011

ख्याब़ों जो बिना आवाज़ के हैं



एक स्नेह फिसलकर निकली हाथो की पकड़ से, कहीं दूर... कहीं दूर.....

उसका कोई चेहरा नहीं,
उसकी कोई आवाज नहीं,
उसका कोई शरीर नहीं,
उसकी कोई महक नहीं,
उसका कोई छुअन नहीं,
उसका अहसास नहीं,
उसका कोई चुभन नहीं,
उसका कोई दर्द नहीं,
उसकी कोई खुशी नहीं,
उसकी कोई याद नहीं,
उसकी कोई कल नहीं,

पर उसकी धड़कन है जो मेरी सांसो से बात करती है - कुछ कहती है, बंद आंखो में आकर कुछ लकीरें खींचती है और फिर कहती है मुझे पहचान - अपनी धड़कन से....

राकेश

3 comments:

दर्शन कौर धनोय said...

bahut khub ......

Amrita Tanmay said...

अच्छी लगी .

Pravin Dubey said...

बहुत ही सुंदर रचना है.