Monday, June 6, 2011

कुछ निगल रहा है



भूलना और याद से लड़ना दोनों के बीच में से निकलते हम इसी कशमकश में है कि कब जीवन के अदृश्यता को सोचने का मौका मिलेगा?

अपने दोस्त का इंतजार करते हुये जब इस ओर देखा तो लगा की, किसी और कहाँ की तलाश मे कुछ गायब है वे क्या है उसका अहसास मेरे दिमाग में ओझल होते समय की शक़्ति का था। ऐसा लगता जैसे सब कुछ हाथों से छूट रहा है, कुछ भी ठोस और मजबूत नहीं है, कुछ उसे निगल रहा है। हम उस निगलने मे जा रहे हैं, हर रोज़, हर समय, हर भाव से उसमे जाते हैं और वे किसी अहसास को निगल जाता है।

ये पल इस निगलने को मुलायम बना रहा था।

लख्मी
(शायद इसका अहसास सब मे निहित है )

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