Thursday, November 18, 2010

बहते रास्ते

हमेशा कुछ ताज़ा रखने के लिए - कुछ पीछे छोड़ना जरूरी महसूस होता है।
नजदीकी के अहसास को बरकरार रखने के लिए लगता है जैसे दूरी से भिड़ना जरूरी होता है।

ये भिड़ंत क्या है?

किसी चीज़ के साथ भिड़ना और किसी चीज़ को साथ लेकर उड़ान भरना दोनों के बीच में एक सकेंत का दृश्य होता है।

Wednesday, November 3, 2010

एक जगह ऐसी -

( विनोद कुमार शुक्ल की एक कविता )
एक शख़्स हताशा से कहीं बैठ गया।
मैं उस शख़्स को नहीं जानता था मगर हताशा को जानता था।।
मैंने उसे अपना दिया। वो हाथ पकड़ा और खड़ा हुआ।
वो मुझे नहीं जानता था। मगर मेरे हाथ बढ़ाने को जानता था॥
हम दोनों कुछ देर साथ चले।
हम एक दूसरे को नहीं जानते थे बस, साथ चलने को जानते थे।


वो कोनसी जगह होगी जहाँ पर खिलने और उड़ने का मौका मिले। जहाँ पर रूकने और तैरने का इशारा मिले। जहाँ पर मिलने और ठहरने का अंदेशा मिले। हमको लगता है हर शख़्स अपने भीतर ऐसी ही किसी जगह की कल्पना लिये चल रहा है। वो जगह जिसे वो रोज़गार और रिश्तों से बाहर देखता है। जिसमें खुद की कल्पना होती है। ऐसी कल्पना जिसे वे एंकात में जीना चाहता है। ऐसा एंकात जिसमें वो खुद को नये रूप में देखे और बनाये। अपना वक़्त, अपनी कला, अपने रियाज़ और अपना ठहराव – तेजी सब कुछ किसी ताल में सोच पाये।
आप ऐसी कोनसी जगह की क्या कल्पना करते हैं? जो परिवार, काम, दुकान और ट्रनिंग सेंटर से अलग है? वो जगह जो आपको उड़ान की तरफ ले जाती है। वे उड़ान जिसकी ओर आप जाना चाहते हैं।



हमें बताएँ वो जगह कोनसी होगी और कहाँ पर होगी? कैसी होगी? उसका वक़्त क्या होगा? अपनी कल्पना को तस्वीर दें।
ट्रिकस्टर ग्रुप
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फोन नम्बर - +919811535505, +919811233689

असपष्ट शहर



"असपष्ट शहर" - संभावनाओं से भरा शहर।
अनकेनी की तरह ले जाता शहर।
बिना रूके, रोक लेने वाला शहर।
जीने को जीने लायक बनाने वाला शहर।
सफ़र को चौंकाने वाला बनाते रहने वाला शहर।

धूंधला होना और असपष्ट होना दोनों के बीच मे रहने का ये अहसास अपने चित्रों को मान देने के समान होता है। उन चित्रों को जो किसी से भिड़ने के लिये तैयार रहते हैं।

लख्मी