मेरे
दरवाजे पर पड़ा था एक खत,
शायद
रात भर पड़ा होगा। मुझे सुबह
मिला था। रात कितनी तेज बारिश
पड़ी थी,
ये
उस खत से जाना जा सकता था। घर
के छज्जे के नीचे होने के बाद
भी वो पूरा पानी से तर था। अगर
उसे उसी वक़्त खोला जाता तो
उसके टूकड़े हो जाते। वैसे
तो जमीन पर पड़े हर कागज़ को
उठाया नहीं जाता या हर पन्ने
पर ध्यान नहीं जाता। मगर उसे
इस तरह से मोड़ा और लपेटा गया
था की दिमाग उसे उठाने और सुखाने
की ओर एक दम चला गया। खत के
अन्दर लिखे गये शब्दों के अक्श
बाहर उभर आये थे। सभी पन्ने
नीली स्याही से रंग गये थे।
मैं
कभी भूलूंगी नहीं वो सब
प्यारी
अम्मा -
ये
ख़त मैं तुम्हे जहर खाने से
एक घंटा पहले लिख रही हूँ। अगर
जहर नहीं खा पाई तो
घर से भाग जाऊंगी,
मुझे
पता है,
अगर
मैं घर से भाग गई तो मेरे घरवालों
को बहुत ज़लालत झेलनी पड़ेगी
मगर,
अगर
मैं एक दिन और इस घर में
रही तो मैं मर जाऊँगी,
मेरे
हाथ में एक समय ज़हर
की एक छोटी सी शीशी है जिसमें
मेरे बाइस सालों का अंत दिखाई
दे रहा है।
मैं
मानती हूँ,
मैंने
सबको बहुत दुख दिये हैं बस,
अब
बहुत हो गया। अब मैं और दुख
देना नहीं चाहती किसी को। चार
दिन के बाद में मेरी
शादी है और वो रिश्ता भले ही
जबरन रहा है लेकिन "हाँ"
कहने
की गलती मैंने ही की है।
अम्मा
माफ़ कर देना मुझे
मैं जा रही हूँ,
शायद
फिर कभी लौटकर ना आऊँ।
मुझे
अच्छी तरह से याद है वो पहला
ख़त जो मैंने उस रात में
अपने घरवालों को
लिखा था। उसका एक एक शब्द मेरे
दिमाग पर छपा हुआ है। उसमे
समाया डर और दूर निकल जाने कि
खुशी दोनों बहुत ज्यादा थी।
मैं कभी डर को आने वाली खुशियों
से दूर करती तो कभी आगे कुछ है
भी ये सोच ही नहीं पाती। वो डर
फिर अकेला मुझपर चड़ जाता।
अम्मा
तुमने मुझे अपने जीवन की जो
भी बातें बताई वो मेरे दिल को
कसोटती जाती रही है। मैं तुम
जैसी नहीं बन सकती। और ना ही
बनना चाहती। अम्मा तुमने एक
ही टाइम मे वो सब कैसे पी लिया
जो इस छोटी सी जहर की शीशी से
भी ज्यादा जहरीला था। मगर वो
सारी बातें जो जब तुम सुनाती
थी तो मेरे सामने धूंधली ही
सही मगर कुछ तस्वीरें बना
डालती थी। और उमने तुम जवान
दिखती थी लेकिन सही बताऊँ तो
तुम्हारी जवानी की शक्ल में
मैं होती थी। तुम जो जो बताती
जाती लगता जाता की वो सब मैं
कर रही हूँ या मेरे साथ ही हो
रहा है। मैं तुम्हारी कही हर
बात मे,
रात
मे,
कहानी
मे सब कुछ करती जाती थी। क्या
जब मैंने तुम्हे अपनी बातें
बताई तो क्या तुम्हे भी मुझमे
तुम दिखाई देती थी?
मुझे
लगा था की मेरे अब की बातों
में छुपी लड़की तुम्हे जवानी
की अपनी शक़्ल याद आती होगी।
आखिर हमारे बीच में तीस
साल का गेप मिंटो मे भर जाने
का एक यही तो रास्ता था।
इतना
समय बहीत गया है लेकिन उस खत
का एक एक शब्द कभी बी मेरी आंखो
के सामने नाचता है और मैं सहम
जाती हूँ। मैं अगर जरा सा भी
सोचू उस वक़्त को जब मेरे उस
खत को पढ़ा गया होगा तो क्या
हुआ होगा?
उसको
सपने मे भी देखूगीं तो मुझे
ज़हर की भी जरूरत नहीं पड़ेगी
बिना हिचकी लिये ही मैं मर
जाऊंगी।
हमारे
दो पड़ोसी दस साल
के बाद मे मुझे मिले जिन्होने
उस दिन के बारे मे मुझे बताया,
जिन
सालो को मैं अपनी जिन्दगी का
हिस्सा ही नही मानती थी वही
मेरी जिन्दगी की देन थे। अम्मा,
एक
दिन तुम बहुत ग़ोर से एक लोटे
को देखे जा रही थी। झाडू लगाते
लगाते तुम उस बक्से की तरफ चली
गई जो हमारे घर का एक मात्र
तिजोरी बना रहा है। उस लोटे
मे क्या था?
तुमने
कभी नहीं बताया। मगर जब तुम
उसे देख रही थी तो मैंने पहली
बार ये महसूस किया था की तुम
मेरी अम्मा नहीं हो। वो तो
नहीं हो जिसे मैं रोज देखती
हूँ॥ कई बार सोचा था की उसके
बारे मे मैं तुमसे कुछ पूँछू
मगर मन नहीं होता था। इसलिये
नहीं की तुम बताओगी नही या
मेरे पूछने पर तुम्हे बुरा
लगेगा। मगर इसलिये की उस तस्वीर
को मैं भूलना नहीं चाहती थी
जो मैंने एक पल के लिये देखी
थी।
अम्मा
मेरा सच मे मन नहीं है इस जगह
से जाने का -
लेकिन........
मैं
फिर से बोलूँगी
अब
तक इस ख़त की लाइनों में जीवित
सांसो को महसूस करने की भूख
मेरे शरीर को हिलाने लगी थी।
जैसे आर्लम लगाये समय सांसो
के साथ डांस कर रहा हो।