कूड़ेदान के बिलकुल बगल मे रह रहे अशोक जी का कहना है की उनकी पूरी ज़िंदगी मे इतनी तकलीफ़े नहीं देखी होगी जितनी की उन्होने यहाँ पर पिछले एक महीने मे देख ली हैं। जो उन्हे पूरी ज़िंदगी याद रहेगी। अपने दिहाड़ी मजदूरी के काम मे इतने दर्द बरदस्त नहीं किए थे जो अब करने पड़े है उन्हे।
अपने खाने के समान को एक
जगह पर रखते हुये वो दूर देखने की कोशिश कर रहे हैं। शायद भीड़ के भीतर में से कुछ
अपने लिए खोज रहे हो। किसी ऐसे रिश्तेदार को देखने की कोशिश कर रहे हैं जो उन्हे
इन तकलीफ़ों से दूर ले जाएगा और फिर से हँसना और बोलना सिखाएगा। उनके साथ में बेटी
उनकी बीवी कहती है की इनके जैसा कोई गाँव मे बोलने वाला नहीं था, ये हमेशा खुश रहते थे और अब देखो की बस चलती सड़क को देखते रहते है और
गुस्सा होते रहते हैं, जैसे किसी ऐसी चीज से नाराज हो गए है
जो सिर्फ इन्हे ही मालूम है।
उनको अगर सिर्फ देखते ही
रहा जाए तो भी ये एहसास हो जाएगा की ये शक्स कितने टाइम से बीमारी की हड्कन को झेल
रहे है और ये भी मालूम हो जाएगा की ये अपने परिवार से कैसे ये दर्द छुपाने मे
माहिर हो गए हैं। उनकी पलके जल्दी जल्दी नहीं झपकती बस जैसे किसी चीज पर रुक जाती
हैं। फिर अचानक से पलट जाती हैं। अब वो अपनी एक करवट पर लेट गए हैं। हाथो में
अस्पताल के पर्चे हैं। जिनहे वे बार बार देख रहे है फिर सामने की और देखते है, कभी वो कागजो मे देखते है तो कभी सड़क पर, कभी खुद
की तरफ निगाह कर लेते है तो कभी बीवी की तरफ। बस ये नियमित चलता जा रहा है।
उनसे कुछ बात करने की अगर कोई
सोचे भी तो भी उनकी इस रिद्धम को तोड़ना नहीं चाहेगा। अब उन्होने अपनी जेब से कुछ
कटे हुये कागज निकाले। उन्हे जमीन पर बिछा कर देख रहे है। कुछ जोड़ने की भी कोशिश
कर रहे है तो कभी उन्हे उलट पलट कर देख रहे है। कुछ देर के बाद मे उन कटे हुये
कागज को उन्होने हवा मे उड़ने के लिए छोड़ दिया। और खुद अपने पाँव के नाखूनों को
देखने लगे। शायद बड़े हो गए है काफी। उन्हे वे बड़ी गौर से दे रहे है। तभी उन्होने
अपने सिरहाने रखे कपड़ो ने नीचे से एक आधा ब्लेड निकाला और उस नाखून को काटने लगे। इतने
मे उनकी बीवी उन्हे अनदेखा कर रही है। वो अपनी नजर को यहाँ से वहाँ घूमने मे मशरूफ़
है। वो देख रही है उन लोगो को जो अभी तक अपने काम से निबटे नहीं हैं। उनकी गर्दन
यहाँ से वहाँ घूम रही है।
एम्स अस्पताल एक इस चबूतरे
पर हर रोज लोग एक दूसरे से बाते करते हैं और अपनी तकलीफ़ों को बाँट लेते हैं। यहाँ
पर हर दूर दराज से आया हुआ परिवार एक दूसरे का हमराही बना रहता है। किसी के न होने
पर उसके समान की देखभाली करता है और होने पर हर दर्द के बारे मे पूछता है। अशोक जी
को यहाँ पर जैसे सब देखते रहते है। बातें होती है तो उनकी बीवी से। ये सिकंदराबाद
से आए है।