Thursday, September 26, 2013

बातों की तितलियां

वो बात जिसका जवाब उसमें नहीं होता -
वो सवाल है।

वो बात जिसके भीतर ही उसका जवाब होता है -
वो पहेली है।

वो बात जिसका जवाब होता नहीं पर फिर भी उसकी तलाश जारी रहती है -
वो रहस्य है।

वो बात जिसमें जवाब भी होता है और सवाल भी -
वो कहानी है।

वो बात जिसका जवाब किसी और के पास होता है -
वे बातचीत है।

वो बात जिसमें सिर्फ बातें होती है -
वो बिना सवाल जवाब के है।

वो बात जिसमें भाव जुड़ते हैं -
वो अनुभव है।

वो बात जिसमें समय की पाबंदी नहीं होती -
वो कल्पना है।

वो बात जिसमें दृश्य और कहानी मिली हो -
वो स्क्रिप्ट है।

वो बात जो कम शब्दों मे दुनिया बसाये होती है -
वो शायरी है।

वो बात जो लय मे होती है -
वो गाना है।

वो बात जिसमें कई जवाब छुपे होते हैं -
वो झूठ है।

वो बात जिसमें अनेको मोड होते है
वो दास्तान है।

वो बात जिसमें कोई जवाब नहीं होता  -
वो क्या है?







लख्मी

मौजूदगी

गैरमौजूदगी को मौजूद रहने के जिंदा अहसास

जीवन के जिन्देपन का एक रिले जिसके अनेको चेहरे है

किसी गैर समय की धारा में - खुद के होने विम्ब

Friday, September 20, 2013

हम

अनेकों "मैं" का बसेरा।
'एक' और 'अनेक' के बीच का एक ऐसा पुल जिसपर कभी भी यहां से वहां हुआ जा सकता है।
विभिन्न आवाज़ों से बनी एक गूंज।
"सब कुछ" की इच्छा से बना

उंगलियों के निशान

राकेश

कम आमदनी में जीना

हफ्ते में शायद ही कोई ऐसा दिन होता होगा जिस दिन बिमला जी घर में कुछ खोज ना रही हो। अक्सर पलंग के अंदर से चावलो के कट्टे में रखे बर्तनो को निकालकर वे घण्टा भर उन्हे देखती व खकोकरती रहती हैं। कटोरियां अलग, गिलास अगल, चम्मचे अलग, थालियां, लोटे सब अलग। सा‌थ ही पीतल, सिलवर और स्टील अलग। उनके थैले में बर्तनों के साथ साथ चुम्मबकों के कई छोटे छोटे पीस पड़े रहते हैं। वे सबके अलग अलग चिट्ठे बनाकर उन्हे गिनती रहती है। अपने कोई हिसाब लगाकर उसे वापस उसी बोरी मे बड़ी सहजता से रख देती है। मगर यह देखा और खकोरना यहीं पर नहीं थमता। यहां से शुरू होता है। हर वक़्त उनके कान उस आवाज़ को सुनने की लालसा करते हैं जिसमें कुछ अदला-बदली के ओफर हो। कुछ लिया जाये और कुछ दिया जाये। वो इस बात पर हमेशा कहती है, “यह सारे बर्त बेटी की शादी में काम आयेगें। उसके कन्यादान देने के लिये।" उनके घर मे सारे बर्तन ऐसे ही किन्ही नाम से रखे गये हैं। सबके घरों मे गुल्लके होती है मगर बिमला जी के घर मे यह चावलों के कट्टे ही उनकी गुल्लके थी। जिसमें पैसे नहीं बर्तन थे।

आज बी कुछ ऐसा ही दिन था। होली चली गई है। पर कई ऐसी चीजें छोड़ गई है जिनका उपयोग किया जा सकता है। उनके घर मे कुछ भी बेकार नहीं है। डिब्बे, प्लास्टिक, लोहा और यहां तक की कपड़े। एक भी होली खेला कपड़ा ऐसा नहीं था जो बेकार हो। सुबह ही उन्होने एक एक कपड़ा एक कोने मे जमा कर दिया था। कमीज़, पेन्ट, सूट, साड़ी, टीशर्ट, पजामा, बनियान, कच्छे और टोपिया यहां तक की जूते भी। अलमारी खोलकर सारे कपड़ो को बाहर निकाल कर उनमे कुछ तलाश रही है। तलाशते तलाशते बात भी ऐसी कहति है कि किसी को बुना ना लगे। "चलो भई आज अलमारी मे से गर्म कपड़े बाहर निकाल दिये जाये और पतले कपड़ों की जगह बनाई जाये।"