Saturday, August 17, 2013

मिट्टी के निशान

कौन कहता है की वक़्त चुटकी बजाते ही गुज़र जाता है? वक़्त कभी गुज़रता नहीं है। वो जमा रहा है कई अनगिनत चीज़ों मे और जरूरत की हर एक तस्वीर में। यहाँ इस घर मे भी वक़्त  जाने कितने समय से कहीं छुपा बैठा था। सबको दिखता था लेकिन शायद ही किसी की हिम्मत होती की उसको जाकर छेड़ा जाये। हर कोई उस वक़्त को हर रोज़ सलाम करता हुआ दरवाजे के बाहर हो जाता और शाम को उसी के कहे नक्शेकदम पर चलने की कोशिश करता। खाली यही नहीं था जो किया जाता। इस वक़्त को मौज़ूद रखने के लिये वक़्त को जिन्दा कहा जाता। उसके पीछे न जाने कितनो से लड़ना पड़ता। ऐसे ही दोहराने में क्या नहीं दोहराया जा सकता? वो भी दोहराया जा सकता है जिसकी कोई पहचान नहीं है और वो भी दोहराया जा सकता है जिसकी कोई याद नहीं है। हर चीज़ आज बिना कुछ बोले ही दोहराये जाने के लिये तैयार खड़ी थी।

गुज़रे दिन पुरानी तस्वीरों को देखकर ऐसा लगा जैसे इसमें छुपा और पीछे नज़र आता घर फिर कभी नहीं देख पायेगें। खुशी के साथ एक डर भी था। न जाने क्यों था? होना तो नहीं चाहिये था। घर का बनाना किसी के लिये कितना मायने रखता है? और अपने घर को बनते देखना शायद इस दुनिया का सबसे अनमोल तोहफा है।

Friday, August 2, 2013

परछाईयों से उपजी रूहें










एक तरलता जो किसी भी आकार में ढ़ल सकती है।
बहुध्वनियों से बना मैं।
मैं और हम के बीच बहुतायत।

राकेश