Wednesday, May 21, 2014

बेकारी


न्यौता है, धोखा है, खेल है, चुभन भी है। पसंद और ना पसंद के बाहर से खुद को रखने की बहस को पैदा करता है। जो सामने दिख रहा है वो अपने से आगे ले जाने को ज़ोर देता है। बेकारी कई पर्दों मे घिरा हुआ एक रास्ता है जो थकान से उड़ान की और ले जाता है।

रुझान

राकेश

Monday, May 12, 2014

पर्दा और फिल्म के टुकड़े पार्ट 4


आखिर कब तक दरारियों से फ़िल्मों के मज़े लुटे?, आखिर कब तक गूंगी फ़िल्मों की कहानियों का अनुमान लगाये और आखिर कब तक किसी के आ जाने के अंदेशे पर उल्टे पाँव भागे? ये सवाल किसी के लिए जरूरी हो या न हो लेकिन बच्चों की आँखों में ये सवाल हमेंशा धरे रहते।

रामकिशन जी के घर में हमेंशा धमालचौकड़ी लगी रहती। वे इस बिमारी को अपने घर ले आये थे। काफी समय से फरमाइशे सुन रहे थे मगर हर बार कुछ न कुछ गुडपंगा सामने हो जाता था। वे हमेंशा उससे चूक जाते थे। मगर इस बार तो उन्हे तीर निशाने पर मारा था। बस, बोनस मिलने की ही देरी थी और उनको काम पूरा करना था। जिस वक़्त का उन्हे इंतजार था वे 1992 में हो गया। इस बार दिपावली पर मिले बोनस ने उनके घर की सभी फरमाइशे पूरी कर दी थी। उनकी गली का पहला वीसीपी जो उन्होनें नया खरीदा था। कम से कम दस हजार की कीमत थी उसकी। मदनगिर की दुकान से वे ले आये थे। उनके यहाँ किसी ने भी ऐसा वीसीआर तो कभी देखा नही था। सभी उसे छू-छूकर देख रहे थे। वे सभी को बताते रहे की ये वीसीपी है। इसमें भी हम फ़िल्म देख सकते हैं लेकिन कोई माने तो तब ना। सभी ने तो वो बड़ा वाला देखा था। जो बड़ा और भारी था।

रामकिशन जी को उसके साथ में एक फ़िल्म गिफ्ट भी मिली थी। जिस फ़िल्म का एक गाना बेहद मशहूर रहा था। फ़िल्म थी 'जोनी मेंरा नाम' और गाना था 'पल भर के लिए कोई हमें प्यार करले, झूठा ही सही' बस, उन्होनें वो फ़िल्म उसमें चलाकर दिखाई तो सभी बेहद खुश हुए।

उनका लड़का बोला, “मगर ये है क्या, ये बहुत छोटा है।"
रामकिशन जी बोले, “ये वीसीआर नहीं है ये वीसीपी है।"
उनका लड़का बोला, “यानि ये उसका बेटा है?”
रामकिशन जी बोले, “हाँ ये उसका बेटा है।"

ये कहकर वो हँसने लगे, और उनके घर के लोग बस, फ़िल्म में खो गए। खाना-वाना बनता रहेगा। पहले फ़िल्म तो देखले। उनके बच्चे उस वीसीपी को बार-बार निहार रहे थे। आँखें उससे दूर ही नहीं जा रही थी। बार-बार फ़िल्म से नज़र किसी न किसी की नज़र हटती और उस वीसीपी पर चली जाती। उनकी लड़की तो पड़ोस से सभी सहेलियों को बुला लाई थी और उनकी बीवी पड़ोसियों को। थोड़ी ही देर में उनके घर में हुज़ुम भर गया था। सभी उसके बारे में पूछने लगे थे। रामकिशन जी सभी को उसके बारे में बताते रहते। वो वीसीआर नहीं वीसीपी लाये है ये उन्हे सभी को बार-बार बताना पड़ा था। वीसीआर का मतलब होता है कि जिसमें फ़िल्म देख और रिर्कोड भी कर सकते हैं लेकिन वीसीपी खाली फ़िल्म देखने के लिए होता है। VCR-VIDEO CASSETTE RECORDING और VCP- VIDEO CASSETTE PLAYER. ये बात जब उन्होनें सभी को बताई तब जाकर सभी उसका मतलब समझे लेकिन अफसोस ये था की उनका लड़का उसे आज भी वीसीपी को वीसीआर का बेटा ही कहता था।

चाहें जो भी हो मगर उनके घर का माहौल ही बदल गया था। कोई भी उनके घर से जाना ही नहीं चाहता था। सभी वहीं पर धूनीरमा कर बैठ जाते थे।

लख्मी