किसी के चले जाने के बाद भी चिन्ह बना रहना ।
अपने बीच वो जगह जो हमारे लिये सदेव नहीं है मगर उसमे जगह बनाने की निरंतर कोशिश जाती है कि हम भीड़ में संतुलन का माहौल ले पाये।
भीड़ जिसमें न सावधान है, न विश्राम बल्कि इन दोनों स्थिती से अलग पांव निकालने की बैचेनी है।
जगह में हर कोई एक तलाश लेकर आता है। जो बदल भी जाती है, गायब भी हो जाती है और एक नया आंनद को पाकर फिर अगले ही दिन किसी और आनंद में रम जाती है।
समय छलिया है जो तरह-तरह की लीलायें रचता और करता है। जिसके प्रभाव से कभी बेकाबू हो जाना है कभी उसे आसमान उँचाइयों पर कदम रखना है। ज़िंदगी कभी मौत से जीत जाती है। कभी मौत ज़िंदगी से, ज़िंदगी के साथ कुछ याद और कुछ कल्पना जुड़ी है। उसे हम छोड़ नहीं सकते। वो हमारा वज़ूद है। जो वर्तमान को जीने की होड़ देता है।
राकेश
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