कहीं का हो जाना कैसे जीने की कोशिश करता है। ऐसा जैसे किसी भूमण्डलिये अंधी फोर्स के सामने खड़े हैं और वे जितना अपनी और खींचती है उतना ही पीछे की ओर धकेलती है। उसके सामने खड़े रहने पर कुछ नहीं दिखता। बस, कुछ आकृतियां बनती है और झट से गायब हो जा रही है। कोई धूंधली परत उन्हे अपने कब्जे मे ले रही है। मैं उसके सामने से रोज़ निकल जाता रहा हूँ। कोई डर मुझे उसके अन्दर दाखिल नहीं होने देता। ये डर उसके भीतर घूसने का नहीं है। किसी ने जैसे मेरे पांव पकड़े हुए हैं। रोज वहां से गुजरता, लोगों को उसके अन्दर खोते हुये देखता। पहचानने की कोशिश करता। कोई पहचान में नहीं आता।
मैं उसके अन्दर दाखिल हो गया। मेरे आसपास एक भीड़ की गरमाहट महसूस हो रही थी। कोई नहीं दिख रहा था अब भी। मगर गरमाहट इतनी थी के उसको अहसास किया जा सकता था। जब बाहर निकला तो कई लोग उसके अन्दर दाखिल होने को तैयार खड़े थे। मुझे देख रहे थे। वैसे ही जैसे मैं देखता था। मेरा रंग बदल गया था। मुझपर कुछ और चड़ा था। मैं जैसे खुद को पहचान नहीं पा रहा था। कुछ समय लगा मुझे उसमे से बाहर निकलने मे। मगर बहुत समय लगा मुझे वापस "मैं" बनने में। मैं कुछ समय के लिये कुछ और बन गया पर वो कुछ और मैं कभी नहीं बन पाया।
रास्तों की बुनाई मे सफ़रों को याद रखने की खुटियां नहीं गड़ी होती। वे बह जाने के लिये बनते हैं। कोई उनपर कैसे चल रहा है या कोई उनपर कहां है का रहस्य निरंतर बना रहता है। कभी किसी को मुड़ने पर विवश करते हैं तो कभी किसी को उड़ान में ले जाने को।
यहां कौन क्या है और कौन, कौन है के सवाल बेमायने रूप मे हैं। बस, मैं किसे अपने करीब खींच रहा है और किसके करीब खिंच रहा हूँ का जादू बेमिशाल होकर चलता है। ये अस्पष्टता जीवन को उन रास्तों सा बना देती है जो अपने हर कटाव पर एक दुनिया की झलक देता है। जहां पर रहस्य, अपरिचित, बेचिंहित जीवन की उपाधि पाने की कोशिशों के बाहर होने की फिराक में चलते हैं। उस बहकने के साथ जिनका मानना है कि घेरो के बाहर का जीवन जिन्दगी को उत्पन्नित बनाता है।
हर कोई ये कोशिकाएँ उधार ले रहा हो जैसे। वो अनोखी दुनिया इन टूटी हुई जीवित कोशिकाओं से भरी हुई हैं। वे जो हर वक़्त सक्रिये है - एक दूसरे को इज़ात कर रही है। बिना याद्दास्त के बन रही है। जन्म, मौत फिर से जन्म लेना और फिर से मौत – इस साइकिल से वे दूर हो जाती जा रही है।
रास्ते वे नहीं है जो कहीं ले जाते हैं, वे नहीं है जो बाहर हैं, वे नहीं है जो दिखते हैं, वे नहीं है जो मंजिल के लिये बने हैं, वे नहीं है जो नक्शे मे कनेक्शन से दिखते हैं, वे नहीं है जो जुडाव के लिये बने है। वे इनविज़िवल लाइनें है। रंग, लिबास, कहानियां जो अनुभव जाल से बाहर की है, अभिव्यक़्तियां और इशारें। सब कुछ पल भर के अहसास मे जीते हैं और फिर रंग बदल लेते हैं। जीवन की कल्पना इनसे उधार ली गई रंगत है। इसका कोई ठिकाना नहीं है, जैसे हवा के झोकों मे ये मिक्स होकर चलती है। इस हवा के झोकों के साथ जाना जीवंत रहता है।
लख्मी
मैं उसके अन्दर दाखिल हो गया। मेरे आसपास एक भीड़ की गरमाहट महसूस हो रही थी। कोई नहीं दिख रहा था अब भी। मगर गरमाहट इतनी थी के उसको अहसास किया जा सकता था। जब बाहर निकला तो कई लोग उसके अन्दर दाखिल होने को तैयार खड़े थे। मुझे देख रहे थे। वैसे ही जैसे मैं देखता था। मेरा रंग बदल गया था। मुझपर कुछ और चड़ा था। मैं जैसे खुद को पहचान नहीं पा रहा था। कुछ समय लगा मुझे उसमे से बाहर निकलने मे। मगर बहुत समय लगा मुझे वापस "मैं" बनने में। मैं कुछ समय के लिये कुछ और बन गया पर वो कुछ और मैं कभी नहीं बन पाया।
रास्तों की बुनाई मे सफ़रों को याद रखने की खुटियां नहीं गड़ी होती। वे बह जाने के लिये बनते हैं। कोई उनपर कैसे चल रहा है या कोई उनपर कहां है का रहस्य निरंतर बना रहता है। कभी किसी को मुड़ने पर विवश करते हैं तो कभी किसी को उड़ान में ले जाने को।
यहां कौन क्या है और कौन, कौन है के सवाल बेमायने रूप मे हैं। बस, मैं किसे अपने करीब खींच रहा है और किसके करीब खिंच रहा हूँ का जादू बेमिशाल होकर चलता है। ये अस्पष्टता जीवन को उन रास्तों सा बना देती है जो अपने हर कटाव पर एक दुनिया की झलक देता है। जहां पर रहस्य, अपरिचित, बेचिंहित जीवन की उपाधि पाने की कोशिशों के बाहर होने की फिराक में चलते हैं। उस बहकने के साथ जिनका मानना है कि घेरो के बाहर का जीवन जिन्दगी को उत्पन्नित बनाता है।
हर कोई ये कोशिकाएँ उधार ले रहा हो जैसे। वो अनोखी दुनिया इन टूटी हुई जीवित कोशिकाओं से भरी हुई हैं। वे जो हर वक़्त सक्रिये है - एक दूसरे को इज़ात कर रही है। बिना याद्दास्त के बन रही है। जन्म, मौत फिर से जन्म लेना और फिर से मौत – इस साइकिल से वे दूर हो जाती जा रही है।
रास्ते वे नहीं है जो कहीं ले जाते हैं, वे नहीं है जो बाहर हैं, वे नहीं है जो दिखते हैं, वे नहीं है जो मंजिल के लिये बने हैं, वे नहीं है जो नक्शे मे कनेक्शन से दिखते हैं, वे नहीं है जो जुडाव के लिये बने है। वे इनविज़िवल लाइनें है। रंग, लिबास, कहानियां जो अनुभव जाल से बाहर की है, अभिव्यक़्तियां और इशारें। सब कुछ पल भर के अहसास मे जीते हैं और फिर रंग बदल लेते हैं। जीवन की कल्पना इनसे उधार ली गई रंगत है। इसका कोई ठिकाना नहीं है, जैसे हवा के झोकों मे ये मिक्स होकर चलती है। इस हवा के झोकों के साथ जाना जीवंत रहता है।
लख्मी
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