Thursday, July 1, 2010

एक लेखिका का परिचय पढ़ा

एक लेखिका का परिचय पढ़ा, परिचय की ठोस रूपी जीवन से अत्यंत अलग महसूस हुआ। यही अलग और विभिन्न होने का अहसास अगर हम लेकर चलें तो आसमान भी छोटा पड़ेगा उड़ान के लिये।

परिचय अक्सर इतना मजबूत होता है कि उसमें शरीर के ऊपरी हिस्से की बेहद कड़ी जानकारी बसी होती है। यानि परिचय मे पाँव का कोई अभिवनय नहीं होता। परिचय में कोन का सवाल जितना सख़्त होता है उतना ही कहाँ से है का भी दबदबा रहता है। इसलिये पाँव का कोई मोल नहीं। अगर हम अपने परिचय में पाँव का मान देते हैं तो वे समाजिक नितियों से बाहर हो जाता है जिसका बौद्धिक जीवन यानि उड़ान वाले अहसास से जुड़ने लगता है। फिर वो अपने जीवन को उन पाठ्यक्रम मे देखने लगता है जैसे किसी फिल्म मे चलती कोई एड़वोटाज़िंग हो। समाजिक जीवन मे बौद्धिक जीवन इसी रिद्धम मे पहचाना जाता है। भला क्यों इसका अहसास इसको जीने वाला ही तोड़ सकता है। लेकिन अपने से बाहर जब वो देखता है तब क्या पैश होता है?

परिचय बौद्धिक होता है या समाजिक? परिचय बांधने के लिये होता है या खोलने के लिये? परिचय मिलन के लिये होता है या चुनने के लिये? परिचय की डोर क्या है? या परिचय की कोई डोर ही क्यों है?

ये सब सवाल तब पैदा होने लगते हैं जब किसी क़िरदार लिखा जाता है। लेकिन फिर भी क़िरदार मे और जीवन के मूल शरीर मे बहुत गेप होता है। क़िरदार ज़्यादा आजाद और घुलनशील होता है।

हम अनेकों जीवन की उड़ान से खुद को रचते चलते हैं लेकिन किसी एक वक़्त में ये भूला देते हैं कि हम कहीं उन्हीं मूलधाराओं में तो नहीं फँस रहे जिनको तरल और आसान बनाना है। अपनी उड़ान में इन अहसासों को बांधे।

परिचय को पढ़ने के बाद मे लगा की जैसे परिचय में सपनों की क्या जगह होती है? सपनें किसी परिचय में जब आ जाते हैं तो कुछ तरल हो जाता है।

लख्मी