Thursday, December 2, 2010

ठहराव और रफ़्तार के दरमियाँ

भागते और ठहरते हुए समय को हम कैसे सोचते हैं?

ये एक ऐसा कोना है जो कई नक्शे तैयार करता है। अजनबियों का एक ऐसा रास्ता जो शहर को बनाने मे मदद करता है। चलता है, रूकता है, भागता है, सोता है, सांसे लेता है और फिर से कहीं चल पड़ता है। कहीं पर अगर आँख रूक जाये तो इस पूरी जगह को तोड़ने का काम करती है। तोड़ना यानि खुद को मौजूद रखना।



लख्मी

1 comment:

डॉ .अनुराग said...

शानदार !!!!बड़ी जालिम चीज़ है ये टेक्नोलोजी .....