Saturday, November 5, 2011

चुम्बकों के बीच में

जमीन पर बहुत गहरी छाया थी। उसके नीचे एक रेहडी खड़ी थी। आसपास मे कोई नहीं था। वे छाया नियमित हिल रही थी। कभी जमीन के उसी हिस्से पर छाया बड़ी हो जाती तो कभी अपना ठिकाना बदल लेती लेकिन वे जगह चुनी जा चुकी थी। सामने एक खिड़की के भीतर से कोई लाइट चमक रही थी। ज्यादा तेज नहीं थी लेकिन उसका लगातार आना इस जमीन पर गिरी छाया मे हरकत ले आता। फिर एक जोरदार आवाज़ और वॉयव्रेशन के जैसा पूरी जगह का कांप जाना। आवाज़ के क्षण भर बाद में फिर से वही।

छाया बड़ी हो रही है - रेहडी को पूरी तरह से ढक लिया है। खिड़की से एक बार फिर से लाइट का इशारा हुआ और एक जोरदार आवाज़ - दीवार पर पड़ता वार उसे हिला देता। पहली और दूसरी मंजिल को एक ही रूप मे बना दिया गया है। वे छाया जब भी उस लाइट की तरफ मे जाती तो दीवार से टकरा जाती और फिर शुरू होता वार का होना।

एक बड़ी सी चैन जमीन पर गिरने लगी - वही चैन जो छोटी होने पर ताले मे लगने से चीज की बंदिश हो जाती है। उसका आकार 100 गूना था। सांप की तरह वे जब गिरती चली जा रही थी। साथ ही वे छाया जो अब तक जमीन पर पड़ी थी वे वहां से अपनी जगह बदल रही थी। खिडकी के इतनी पास हो गई थी के खिड़की को देखना मुश्किल हो गया था। वे कभी दूर होती तो कभी खिडकी पर वार करती और किसी पोटली को वहाँ से निकाल लाती।

लख्मी

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