Friday, December 16, 2011

"प्रभाव"

हम लिबास, छवि, रूप और नकाब को सोचते हैं। इनसे बहस करते हैं, बदलते हैं, लड़ते हैं और संधि भी करते हैं लेकिन ये क्या है? और इनके बीच में क्या है? पिछली रात – "अंत के बिना" एक प्रफोमेंस देखा। कुछ ऐसा लगा की ये इनके बीच में हैं - ये एक पिरोया हुआ संवाद है जो एक दूसरे के गुथे होने से तैयार होता है।

"अंत के बिना" का एक दृश्य :
एक लड़की अपने चेहरे पर रंग ही रंग चड़ाती है बिना पहले किया हुआ रंग मिटाये बिना। कभी लाल, कभी सफेद, कभी हरा, कभी पीला, कभी नीला तो कभी काला। लगाती जाती है - लगाती जाती है। फिर उन्हे एक सफेद कपड़े से पोंछती है। तो रंग साफ नहीं होते बल्कि एक ऐसा रंग चेहरे पर चड़ जाता है जो उसने मला नहीं था।

प्रफोमेंस :
अपने पूरे शरीर पर काला रंग चड़ाये वे कमरे से बाहर आता है। कई काले रंग के कुर्ते पहने हुए। एक – एक कर वे अपने सभी कुर्ते पब्लिक में बैठे लोगों को पहना देता है। फिर एक शरीर जो अपने रंग से निजी रंग से पुता हुआ था वे भी किन्ही हिस्सों से किसी और रंग मे चला जाता है। जिन लोगों को उसने अपने कुर्ते पहनाये थे बिना उतारे हुए उनके भीतर भी वे उस रंग की कसक डाल देता है।

इनमें हम अभिव्यक़्तियों, नकाब और लिबास को किन सवालों के थ्रू सोच सकते हैं? जबकि ये इस अवधारणा को तोड़ता है की जीवन कई रूप मे जीता है। जो एक से निकलकर दूसरे मे जाना है। शायद एक – दूसरे के बीच में कई सवाल है जो इन्हे जुदा करते हैं। एक दूसरे के विपरित खड़ा करते हैं। हर छवि एक दूसरे से भिन्न होती है लेकिन क्या वे एक दूसरे से बिना है?

लिबास क्या है? किसी को धारण करना है या कुछ और है? "वक़्त" इस सवाल को पूछता है - बेहद गहरी चुप्पी के साथ। मुझे लगा की "चुप्पी" ही इसका जवाब है लेकिन ऐसा नहीं है। "चुप्पी" उस लिबास की वो आवाज़ है जो चीखती है - मौजूद रहती है।

छवि, रूप, लिबास या नकाब – ये "पिछला छोड़ना" और "किसी दूसरे" में जाना नहीं है। वे रीले करता है। किन्ही चेहरों को, सफ़र को - जो जीवनंता के अहसास से बनी होती है। ये लड़ाका नहीं होती - ये रोमांचक है। वे जो अपना रोमांच चुनती नहीं है - खोजती है। ये एक - दूसरे के भीतर से निकलकर जीने वाली आकृतियाँ है। कुछ भी बाहर का नहीं है या ये सब अंदर का नहीं था। ये अंदर बना था बाहर से और बाहर गुथा है अंदर से। "पिछले की कग़ार" जो अगले को बनाती हो।

बेहद रोमांचक है -
बिना रूके उस ओर ले जाता है जिसका छोर नहीं है। गुथा हुआ, पिरोया हुआ और धारण करना के मौलिक ढाँचों से सीधा टकराता है उसे तोड़ता है। फिर बात करता है। बहुत अच्छी रात रही -

लख्मी

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