Tuesday, January 17, 2012

रिजर्व और स्ट्रीट

हम "आरक्षित" को कैसे देखते व पढ़ते हैं – कोर्नर, बस की सीट, नोकरी, जगह यहाँ तक की खाने की टेबल तक। ये किसी ऐसी अवस्था मे जाने के समान है जो अपने चिंह छोड़ने के जैसा नहीं है बल्कि चिंह गायब करने के समान है। "आरक्षित" का होना एक बहस को उत्पन करता है। एक उदाहरण देना चाहता हूँ - अगर कोई दो लोग ये जिद् करले की वो खोना चाहते हैं एक – दूसरे से तो ये कैसे साबित होगा की पहले कोन खोया? एक शख्स सड़क के किनारे मे नाई दुकान चलाते हैं। हर रोज़ वो अपने कांधे पर अपनी कुर्सी और नाई का समान लेकर आते हैं और शाम तक रहते हैं फिर चले जाते। वे अपने सामने वाली सड़क पर कभी किसी को रोजाना नहीं देखते। ऐसा कोई भी चेहरा नहीं होता जो रोज़ दिखता हो। यहाँ तक की उनकी दुकान पर भी हर रोज़ वो बन्दे नहीं आते जिन्हे उन्होनें पहले भी देखा हो। लेकिन इस पढ़ाई में वो ये भूल जाते हैं की वो कितनों को इस सड़क पर रोज़ दिखते होगें। इस गिनती मे वे हमेशा गायब होते हैं।

शहर को सोचते हुए ये तस्वीर हमेशा खुलती है कि शहर को सोचने वाला या रचते हुए देखने वाला खुद कहाँ होता है? मैं कई दिनों से बाहर घूम रहा हूँ। ये बाहर मेरे दायरे मे नहीं आता तो बाहर लगता है। सब कुछ ठहराव मे लगता है, ऐसा लगता है जैसे मैं खुद को ठहराव मे देखना चाहता हूँ। लेकिन क्यों? अपने को कोई जगह दिलानी है तो पूरे इलाके को सोचने से पहले लोगों को अपनी धारणा मे क्यों बसा लेता हूँ? इलाका, घर, काम और वो स्पेश जिसकी तलाश है वो सब 'मुताबिक' क्यों? सड़क का किनारा जहाँ पर मैं पढ़ रहा हूँ किसी को, कोई मुझे भी पढ़ रहा है।

"दृढ़ होना" मगर इसके विरूध में "लचीला होना" ) शहर इन दोनों के बिना जीता है। शहर असल में कुछ भी नहीं है। वे महज़ एक परछाई है जिस पर पड़ जाती है वैसा रंग ले लेती। शहर किसी का दिया हुआ नाम है?, लिबास हैं?, आधार हैं?, पता है? या शब्द हैं? ये शब्द कहाँ से आते हैं?
रफ्तार, रूकना, खड़ा रहना, स्टाफ, चुप्पी, मंच, बिका, निजी, शिफ्ट, होर्न, सावधानी, चेतावनी ये शब्द किसके हैं, किसके लिये, इनमें कोन हैं, किसकी आवाज़ में है?, किसके चेहरे हैं?, कोनसी जगहें हैं और क्या कल्पनाएँ हैं?

मैंने शहर को सोचने की कोशिश की "Reserve or Street” से। ये किस तरह से भिड़ंत में हैं? जहाँ शहर अनबेलेंस और अननोन बना रहता हैं वहीं पर "आरक्षित" का एक खेल है और पुख्ता है। लेकिन शहर जब हम बोलते हैं, सुनते हैं या देखते हैं तो कोई भी जगह जो खुद से रखी या बनाई जा रही है। वो स्थिर तो होती है लेकिन स्थित नहीं होती और शायद ये परत ही इसकी असली तस्वीर हैं। जैसे - आज जो है वे कल नहीं होगी ये तय नहीं होता? आज हो बना है कल वो ताज़ा होगा ये भी पक्का नहीं होता। इस रिदम में शहर के भीतर जीना और शहर के साथ जीना जीने लायक समा बाँधता चलता है। ये शायद शुरूआत है -


खुद के सन्नाटे को शोर मे बदलने की कोशिश की है। जब हम सन्नाटे को सोचते हैं तब 'Reserve' समझ मे आने लगता है। ये मांग मे क्यों हैं?, बहस मे क्यों है?, लड़ाई मे क्यों है? असल में ये खुद को दिखाने के समान है। लिबास को शख़्सियत बनाने की लड़ाई है।

एक मात्र अगर देखा जाये तो सिर्फ सड़क का किनारे शहर के बीच मे बेसहारा रहता है। ये किसी का नहीं है। वैसे हर किसी का है। यहाँ पर कुछ "आरक्षित" नहीं है। ये शोर में इजाफा करने के लिये भी है और शोर से लड़ने के लिये भी। मैंने "आरक्षित" को सोचते हुए खुद को रखा है। ये खेल भी हो सकता है और अपना आपा रख पाने के जैसा भी। एक सवाल दिमाग मे आया - क्या सड़क का किनारा हमको इतना उक्सा सकता है कि हम उसे अपनी कल्पना मे ले ले?

बोर्ड कोर्नर - शहर को पढ़ना ये कहाँ और कैसे उभरता है? अगर हम शहर के उन जगहों पर जहाँ बड़े-बड़े बोर्ड लगे होते हैं वहाँ पर और किसी एक इलाके के मोड़ पर एक छाता और बुक सेल्फ लगा दिया जाये तो?


बस के अन्दर - सीटें हर रोज़ उठने - बैठने, नातों के कनेक्शन, छोटी मुलाकातों के अहसास और अजनबी कहानियों के जुड़ावों से भरी होती। बस जिनती भरी होगी उतनी वो सक्रिये होती है और सबसे नजदीक होती है उसकी सीट। लेकिन सबसे ज्यादा "आरक्षित" का अहसास उसी मे जुड़ा होता है। काश एक शहर ऐसा होता की घर से बाहर निकलते ही वे रिश्तों, कामो और अपने से दूर हो जाता। खो जाता। सीटों को अजनबियों के हवाले कर दिया जाये और एक इलैक्ट्रनिक बोर्ड ऐसा हो जो किसी रिड़िंग को सुना या पढ़वा रहा हो। एक कल्पना सफ़र की, मूव की और किसी के होने की।



कूड़े का खत्ता - सड़क का कोना जहाँ एक मात्र कहे तो जो दिखता है। वो है कूड़े का खत्ता। मेरे एक ने एक बार मुझे इवाइट किया था की अपने आफिस मे चाय पीने को। मैं जब उसके आफिस गया तो उसने और उसके कुछ साथियों के अपना आफिर बनाया था कूड़े के खत्ते के साथ मे एक किसी कमरे को साफ करके। ये देखकर मैं अटपटाया। हँसी भी आई लेकिन ये उस ओर ले जाने की कोशिश थी जो जगह को उसके भार से उतार देती है। एक ऐसी कल्पना मे ले जाती है जो उसको किन्ही और संभावनाओं मे ले जाये। ये एक ऐसा स्पेश है जो अवशेषों से बनता है। इस भार की भिड़ंत मे इसे कैसे सोचे? इसकी छत को ऐसी कल्पना में ले जाया जाये जो एक टेलीकास्ट और पेंटिंग की जगह बने। उस दूरी को नजदीकी लाने की कोशिश नहीं जो जगह से बल्कि उसे चूनौती देने के समान होगी।

स्ट्रीट बोर्ड - अगर कोई बीच सड़क पर जहाँ पर कोई किसी को नहीं सुनना चाहता या न कोई रूकना चाहता। वहाँ पर अगर कोई सुनाने का किनारा बना ले तो? ऐसा किनारा जो पारदर्शी नहीं है और न ही परदेदार है। उस स्पीड से टकराने के समान है जो रूकना नहीं जानती। खोये हुए को सुनना नहीं चाहती और खो जाने पा लुफ्त नहीं लेना जानती।

बिजली का खम्बा - दो अलग-अलग दूरी। गली, सड़क या किसी पार्क मे। खम्बों के बीच की जगह क्या करती है? खम्बा जो अपने नीचे मानले की अलग कहानी गढ़ता है। हर कहानी मे किरदार अलग-अलग होते हैं। उनकी दिनचर्या भिन्न होती है। लेकिन ये शहर की क्या तस्वीर है? क्या इसका कोई नाता है। मैं खुद को कई लोगों के बीच मे पाता हूँ। लेकिन भिन्न मगर जब किसी के सामने पाता हूँ तब लगता है की एक कोई महीम तार है जो खींचा है बीच मे। पर उसकी कोई निशानी नहीं है, आवाज नहीं है और न ही शायद उसका कोई जीवन है। मैंने सोचा की शहर के किन्ही दो खम्बों के बीच मे घंटियों की एक डोरी बांध दूँ। ये शोर जो दो अलग धाराओं को जोड़ता है। तब मेरी दोस्त ने कहा, “तुम सड़क के शोर में और इजाफा कर रहे हो या कुछ टकराव दे रहे हो?”

रेड लाइट - खाली रूकना ही नहीं है इसकी तस्वीर जाना भी है। लेकिन फिर भी इसे ठहराव के नाम से जाना और पहचान मे लाया जाता है। क्यों? जीवन रूकने और खुद को सुनने के लिये भी है लेकिन स्पीड को नवाजा जाता है। वक़्त के साथ चलो। ये चलना क्या है?

इनको कल्पना मे लेने की कोशिश है। शहर यहाँ से किस तरह अपनी उड़ान को लेता है और हम किस उड़ान की तरफ ले जा सकते हैं? उसको धाराणा मे लेकर कुछ स्टूमेंट रखने की कोशिश से समझने की भूमिका अदा की है।

लख्मी

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