कोई एम्बूलेंस की आवाज़ नहीं। धूप के साथ
जैसे इंतजार करते बिमारों के रिश्तेदार अब खुद भी सुस्ताने लगे हैं। छुट्टी का दिन
है। बड़े डाक्टरों के बिना चलते अस्पताल का इंतजारिया कमरा भी बिना किसी रोकटोक के
सुस्ता रहा है। छोटे डाक्टर भी दिखना बंद है। अस्पताल के कर्मचारी ही यहां से वहां
भागते दौड़ते दिख रहे हैं। कम्बर, शॉल, पतली
रजाइयां व पतली चादरों से देखती आंखे उन्हे ही निहार रही हैं। शायद जैसे कोई खबर
उन्ही के हाथों मिल जाये। कमरे में इतनी कुर्सियां नहीं है जितना की जमीन पर अपने
बिस्तर लगाये लोग पड़े हैं। कमरे के बाहर तीन से चार स्ट्रैक्टर खड़े हैं। उनमें
से तीन भरे हैं। हाथ में अपना ही गुलूकोस पकड़े कोई लेटा हुआ है। उसके बगल में
खड़ी एक औरत उससे कुछ पूछ रही है। बाहर स्ट्रेक्टर हैं और कमरे के अन्दर कई बिमार
लोग। कोई कमर में गर्मपट्टी बंधाये कमर की तकलीफ से परेशान है तो कोई पैशाब की जगह
एक नली पकड़े लेटा है। कोई मुंह को कपड़े से धका हुआ है तो कोई आंख के दर्द से
परेशान है। ये वेटिंगरूम ही इनका अपना वार्ड है और बिस्तर अपना बेड। बस, यहां
पर कोई बेड नम्बर नहीं है। बस, अपने पर्चे अपने सिरहाने पर लेटे है। खुद से
अपना बेड तलाशते व बनाये ये लोग डाक्टर का इंतजार करते हैं और यह भी मालूम यहां कब
तक रहना है। हां, मगर यह जरूर पता है कि यहां कबसे है। बस, खूश
हैं कि इलाज हो रहा है। पैसा बच रहा है। यहां पर कोई मिलने का टाइम नहीं है। जब
मर्जी रिश्तेदार आ जा सकते हैं। अस्पताल के कर्मचारी भी इससे संतुष्ट दिख रहे हैं।
यह वेटिंगरूम दिल्ली से बाहर से आये लोगों
से भरा है। गुड़गांव, फरिदाबाद, दादरी,
बलम्भगड़, गाजियाबाद लोगों से तो बाहर एमरजेंसी के सामने की खाली जगह में दिल्ली में
ही रहने वालों की भीड़ जमा है। पुरानी दिल्ली, नई
दिल्ली, बेग़मपुर, कटवारिया
सराय और खानपुर। यहां पर एक जन से जब यह मालुम किया तो वह बोला कि पुरानी दिल्ली
वालो का तो यह अपना अस्पताल है। वे तो यहां पर बुखार, पेट
दर्द, कब्ज़
और तो और एसीडिटी की दवाई भी लेने आ जाते हैं। यह बात उन्होने बोली और जोर – जोर से हंसने लगे। शायद यहां पर उनका अपना कोई नहीं था। अभी फिलहाल धूप इस
जगह में चली रही है। खत्म होने के साथ आगे की ओर बड रही है और लोग उसके साथ – साथ अपना बैठने का ठिकाना तलाशते व बनाते लोग आराम कर रहे हैं। यह जगह
बिमारों से भरी हुई है। एम्बूलेंस, चौकीदार की सीटी, भारी
स्ट्रेक्टर खींचने आवाज़ जैसे यहां के लिये आम सी आवाज़ है और उसके साथ साथ किसी
के रोने, दर्द
में चिल्लाने की भी। लेकिन फिर भी इस आवाज़ के होते ही सभी उसी ओर देखने लगते हैं।
वेटिंगरूम में एक दूसरे से अपनी बिमारी / तकलीफ बांटते लोग इसी में संतुष्ट दिखे की
उनके जैसे यहां कई हैं। एक दूसरे की छुट्टी की खबर सुनते ही उनको यह लगता दिखता की
अब उनको भी जल्दी ही छुट्टी मिल जायेगी।
लेकिन आज सरकारी छुट्टी होने से कईओ की जैसे
छुट्टी केंसल हो गई।
लख्मी
No comments:
Post a Comment