“हाँ शायद, मैं
हकीक़त में इस पूरी घटना का वर्जन, मुलाकात के एक सिरे से
सुनना चाहता हूँ।“
उनके जवाब में सिर्फ एक मुस्कान काफी नहीं थी। आप को ख़बर है की
आज भी ये शहर कितने तरह की घटनाओं और भाषाओं व कारनामो को अपने अनुभव में समेटे
हुए है? लोगों की बात छोड़ों
अभी जरुरत है महसूस करने की। यकायक,
“मैंने सुना नहीं जरा फिर से कहो?”
इतना कह कर वो बाबू कुर्सी से उठ खड़े हुए। मैंने उनके कंधे को सहलाया, “कल शाम जरूर आना।“
कमरे में ठक टक टक। टूक की आवाज आ रही थी। दीवारें टेलीविजन
खिड़कियां और छोटे -बड़े साइज की बनी चीजों का हल्का सा साथ होना मालूम लग रहा था। अन्धेरा पीछे ही था और
कहानी अभी शुरू होने को थी। जैसे किसी फ़िल्मी पर्दे पर स्टार्टिंग में धुम्रपान
हानिकारक, शराब पीना हानिकारक है। ज़ैसे अन्य विज्ञापन आते हैं और फिल्म का माहौल
निमंत्रण दे रहा होता है। आवाजों का गुंबद सा बन कर हमारी ओर बड़ रहा होता है।
वैसे ये बात मैंने भी सोची थी। उनके
इन शब्दों के मतलब के लिए मेरे खुरापात दिमाग में सिर्फ एक खालिस्तान ही भर गया था।
मैं गहरी सांस लेकर कुर्सी छोड़ कर उठा बात मुश्किल से पांच मिनट की थी और सचमुच एक
लम्बा रूप ले गयी।
बात अब भी बाकी है
राकेश
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