Tuesday, October 13, 2009

कोई कुछ भी कहे

ऐ गिट्टी....ऐ गिट्टी.. , वही जानी पहचानी आवाजें कानों में पड़ती जिनके लिए पीछे मुड़ना शायद जरुरी नहीं था और ना ही उन्हे सुनना। आज फूलजहाँ से छोटी उसकी बहन भाभी का भी रिश्ता तय होने वाला था। मगर उसके चेहरे पर खुशी ही नहीं बल्की खूब खिलखिलाती हसीं थी। जिसको देखकर उसके सारे रिश्तेदार उसकी बलाईयाँ ले लेते और शायद यही एक काम रह गया था उनके पास। फूलों सुबह से अपनी अम्मी के ट्रंक में से उनकी नई साड़ी पहनने की बात भी कर चुकी थी और "पूरा शिगांर करुगीं...पूरा शिगांर करुगी" की रट भी लगा चुकी थी।

एक तरफ घर में पुलाव की महक घूम रही थी लगभग पच्चीस-तीस आदमियों का खाना तो बनाना पड़ेगा "ये ले आओ...ये ले आओ" के नारे फैले थे। आज तो वैसे भी किसी के पास वक़्त नहीं था शाम की तैयारी थी। उसमें फूलों भी सुबह से चार बार साड़ी पहनती और खोलती लगा रही थी। खिलखिलाई सी वो आज सबसे खूबसूरत बनने की तैयारी में थी। बड़ी बहन की शादी में तो सुध ही नहीं थी तैयार होने की तो अब अपनी छोटी बहन कि शादी में क्यों कसर छोडे?

"अरी फूलों कहां है किसी को खबर है?” ( नीचे से किसी ने आवाज लगाई)
"अरे वो रही ऊपर साडी बाधं रही है आज तो सजकर ही नीचे उतरेगी ये।" ( किसी में ताना कसते हुए कहा)

"क्यों ना सजे मेरी बच्ची उसकी छोटी बहन की रिश्तेदारी हो रही है। मैं बधंवाऊगीं मेरी बच्ची की साड़ी।"


कुछ देर के बाद फूलों रेशमी सतंरगी साड़ी में बाहर आई एक लम्बा सा घूँघट और अम्मी साथ में। सीढियाँ थोड़ी छोटी थी तो अम्मी उसे संम्भाल कर नीचे ला रही थी।
"बेटा घूँघट तो ऊपर कर ले गिर जायेगी।"
पर हमारी फूलों अपनी बातों में किसी को जगह देती ही कहाँ थी। पता है वो क्या बोली?
"नहीं-नहीं अम्मी में घूँघट में ही जाउँगी बड़ी बहन ने भी तो किया था शादी में मैं भी करुगीं"
और फिर हँसती हुई नीचे उतरती पर अम्मी का ध्यान उसके पैरों पर ही था की कहीं ये फिसलकर गिर ना जाये तो उसको एक-एक सीढ़ी बोल-बोलकर उतार रही थी। अम्मी ने उसे नीचे उतारते हुए कहा था हर कोई वैसे उसको ना जाने किन-किन बातों से खुश रखने की ही सोचता रहता था।

वो बोली थी, "देखा कितनी खूबसूरत लग रही है हमारी फूलों हटो मैं अपनी बच्ची की नज़र उतारुँ।"

सारे के सारे आये रिश्तेदार उसकी तरफ में एक टुक लगाये देख रहे थे घूँघट में जो है वो क्या फूलों ही है या कोई और सीधी खड़ी है। ना कोई का जोश, ना कपड़ों का चबाना!!!

उनमें से एक ने प्यार भरे स्वर में कहा, “अरे ये घूँघट में हमारी गिट्टी है क्या?”

इस आवाज में वो लहज़ा नहीं था जो वो अक्सर गली में सुना करती थी उसने फौरन अपना घूँघट ऊपर किया आँखों में सुरमा, गालों पर लाली और होठों पर लिपिस्टीक!

वो तुरन्त बोली, “मामू जान! मामू मैं कैसी लग रही हूँ लग रही हूँ ना बिलकुल बड़ी दीदी जैसी?”

उनके पास में "हां" के अलावा कोई और शब्द ही नहीं था। अब वो भी अब बाकी के लोगों के साथ मे बैठ गई। जानती हो आसपास में बैठे सभी गली के लोग का तो जैसे ध्यान ही बट गया था। कभी तो वो रिश्तेदारों के ऊपर देखते तो कभी साड़ी में बैठी उस लड़की को। ना जाने क्या देख रहे थे जैसे सब कुछ गुमा था। अब मुझे सगाई के लिए जाना था तो मुझे सभी अपने साथ में बैठाकर सारे इंतजाम कराने के लिए कह दिया। अब सगाई की रसमें पूरी करानी थी तो सभी के कह दिया था की हम सारी रसमें फूलों से ही पूरी करायेगें। मैं रिश्तेदारो के बीच में बैठी थी और फूलों को कह दिया था की वो सारे समानों को मेरे हाथ में रखती जाये। तो वो एक-एक समान को देखती रही और मेरे हाथों में रखती गई वो एक-एक समान को ऐसे देख रही थी की जैसे वो ना जाने क्या हो? पर उसका मन लग गया था उन रसमों में और अपनी कभी ना रुकने वाली नज़रों को घूमाती वो खिलखिलाती उन रसमों को निभाती गई वो खूब जोर-जोर से हँसनें लगी थी।

"मैं तो सब कबूल कर लू बस, मेरी फूलो का कहीं कुछ हो जाये पता नहीं क्या होगा इसका?”

अम्मी उसको देख-देखकर बोले जा रही थी। बस वो तो चारों तरफ में देखकर हँसे चले जा रही थी ये नया काम लग रहा था उसको जो वो किये जा रही थी। वो आज बहुत खूश थी अपने नये रूप में बस अपनी साड़ी और कगंना को देखती और उसे घूमाती रहती बड़ी झूम रही थी। बस, जब सब कुछ हो गया तो वो सारे लोगो से दूर अपनी उसी ख़ाट पर जाकर बैठ गई जिसपर वो हमेशा बैठकर सबके साथ में खेलती और बातें बनाती थी। उस दिन वो इतना अलग लग रही थी ना के सभी उसको देखकर वो रोज का उसका थूकना और उसकी चिपचिपाहट को जैसे भूल चुके थे। भाभी भले ही आज बहुत सारे कामों को करते हुए अपने ये दिन दोहरा रही थी पर आज तो उनके कामों पर कुछ भी ध्यान नहीं जा रहा था बस, उबकी बातों के ऊपर ही सब कुछ था। वो तो बिलकुल खो ही गई थी। आज ऐसा लग रहा था जैसे की वो आज अपने रिश्ते को बड़े नजदीक से देखकर बता रही हो वो अपनी बहन के बारे में नहीं पर अपनी गली में बैठी उस लड़की के बारे में बता रही थी जो ख़ाट पर बैठी सब पर थूकती थी या सबको टोकती थी पर आज उसी ख़ाट पर वो कुछ और ही थी। उसे कैसे यादों में दोहरा रही थी? भाभी!!

लख्मी

No comments: