आज की रात एक - दूसरे के हाथ पकड़कर चलने वाली रात थी। दिल्ली की आग कम थी जो यहाँ की हवाओ के बीच मे मरने चले आये थे। जगह के बनने मे ये भी करना जरूरी होता है। ये यहाँ की पहली शादी थी। बारात अपने छपे वक़्त से 2 घण्टा देरी से थी। रात मे बाजे - गाजे के साथ मे दो तीन घण्टे और बितने वाले थे। सभी कोशिश मे थे जल्दी से दावत मिल जाये तो कहीं पर सोने का जुगाड़ किया जाये।
जनमासा शादी के घर से एक किलोमीटर की दूरी पर था। सभी वहाँ पर बैठकर दावत के बुलावे का इंतजार कर रहे थे। कोई हाथो को बांधे यहाँ से वहाँ घूमता तो कोई किसी को तालशता फिरता। लेकिन इतना आसान नहीं था आज की रात मे किसी को आसानी से देखा जा सके। लोग जैसे दिखते वैसे ही धूएँ मे कहीं खो जाते। अचानक ही एक की जगह दो निकल आते तो कभी कोई भी नहीं दिखता मगर आसपास जैसे कई लोगों के होने का अहसास हर वक़्त घूमता रहता। कभी खाली आवाज़ आती तो कभी किसी की आहाट, दिल मे तभी एक खुशी सी महसूस हो जाती की कुछ भी हो हम अकेले नहीं है।
दावत खा चुके थे - जनमासा लोगो से भर गया था। सो लोगों की बारात मे कुछ 7 रजाइयाँ ही थी, लोग न जाने कैसे - कैसे उसमे घुसे हुए थे। एक - एक रजाई मे लोगों की गिनती नहीं थी। जो भी पहले आ गया था वही रजाई लेकर पड़ गया देरी से दावत खाने वाले जनमासे से बाहर ही खड़े रह गये थे।
सारे तो उस जनमासे मे सो गये लेकिन बचे चार दोस्त जो अपने लिये जगह ढूँढते रहे। पहले तो वो सोचने लगे की बाहर ही बैठ जाये मगर बिना आग के बाहर बैठना मुश्किल था। धूंध में जलाने के लिये लकड़ियाँ लाना भी आसान नहीं था। यहाँ अगर आदमी हाथ छोड़ दे तो खो जाये। उसके बाद मे आवाज़ मारकर ही उन्हे पास लाना हो। बहुत ढूँढने के बाद भी एक भी लड़की नहीं मिली।
चारों के चारों डाल हाथ मे हाथ वो निकल गये जनमासे से थोड़ा सा दूर। ठंड बड़ती जा रही थी। रात इतनी आसानी से गुज़र जाये ये भी तय नहीं था। बस, आँखें खोज़ रही थी कोई ऐसी जगह जहाँ पर बैठकर रात बिताई जाये। पूरा जनमासा घूमने के बाद मे एक ओटक वाली जगह मिली। जहाँ पर थोड़ी सी गर्माहट थी। वहीं पर उन्होने रात बिताने की ठानली। जमीन पर पड़ी एक बोरी मे बहुत तेज - तेज धूआँ निकल रहा था। गरमाहट के अहसास मे वो चारों दोस्त वहीं पर बैठ गये। जमीन पर बैठने के बाद मे तो जैसे हवाओ ने उनको छूने का काम ही बन्द कर दिया था। चारों के चारों बातों में और उस ताप के अहसास मे कहीं खो गये। पूरी रात हाथों को फैलाये ठंड को काटते हुए उन्होने रात को विदा करने की कोशिश करी।
उन चारों के घेरे मे धूएँ की परत कभी चड़ती तो कभी ख़त्म हो जाती। लेकिन हाथ जैसे उस बोरी को ढके चड़े थे। बोरी मे धूआँ भरा हुआ था। ऐसा लगता जैसे रात ने पूरी गरमाहट इसी मे भर दी हो। वो चारों अपनी बातों मे लीन हो चले, ये तक याद नहीं रहा कि उनको यहाँ पर बैठे कितना वक़्त हो गया है। पूरी रात बीत जाने के बाद मे वो वहाँ से उठने के लिये खड़े हुये और उस बोरी को भी उठाने के लिये जैसे ही हाथ बड़ाया तो उसके नीचे से एक कुत्ता बड़ी घबराहट मे उबासी भरता हुआ भाग खड़ा हुआ।
वो चारों एक – दूसरे को बड़ी भौचक्केपन से देखने लगे। पहले तो डर गये लेकिन उसके बाद मे बहुत हँसे - पूरी रात उन्होने कुत्ते को ताप कर बिता दी थी।
यही कहानी पूरे सफ़र मे रोनक रही - चार दोस्तों ने कुत्ते को तापकर पूरी रात काट दी थी।
लख्मी
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