तलाश क्या है? हम तलाश को लेकर खुद के जीवन को कैसे समझते हैं? अगर सीधे से शब्दों में कहा जाये तो - तलाश जो कभी खत्म नहीं होती। तलाशें अंतहीन होती है। तलाश भूख को बड़ाती भी है और उसे ज़िन्दा भी रखती है। मगर तलाश के आगे क्या है? मोटे अक्षरों मे कहे तो तलाश के आगे एक और तलाश है? तलाश के आगे उत्तेजना है और तलाश के आगे संतुष्टी है। मगर तलाश अपना रूप कैसे पाती है? तलाश के रूप के साथ तलाशने वाला का क्या रिश्ता होता है? उसके चिन्ह क्या है?
हमारे सवालों मे तलाश खाली कुछ खोजना ही नहीं रहती। तलाश मांग करती है तराशने की। हम जो तलाशते हैं उसे तराशते भी हैं। शख़्स, जीवन, कल्पना, जगह बनाना, सपने, काम और रिश्ते इनसे लेकर चलते काँरवे को हम कहाँ तक सींच पाते हैं? टूकड़ों मे इनकी महक लेते - लेते इनको भरपूर तराशने के सवाल शुरू हो जाते हैं। जिनसे खाली अभिव्यक़्ति का ही सवाल नहीं रहता बल्कि जिस जगह से हम काफी लम्बे समय से जुड़े होते हैं वे भी डिमांड करती है नये रास्ते और द्वार बनाने की जिसमें नई जगह जुड़ी और नये आयाम भी।
ऐसा महसूस होता है कि कुछ कभी रुकता नहीं है। वे निरंतर चलता रहता है -
लख्मी
1 comment:
हॉं ये सवाल भी महत्वपूर्ण है... तलाश के अंदर क्या है, तलाश के बाहर क्या है ??
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