हमारे सामने नियमित कोई चीज़ बहती जाती है। उसकी गती और समय की अवधि उसको फोर्स देती है। जिसको लेकर वो अपने होने अहसास हो निरंतर गाड़ा करती जाती है।
ये तो एक प्रक्रिया है, जो उसको जिन्दा रखती है। लेकिन, क्या हमें पता है कि हम उस नियमित और निरंतर गति मे कैसे दाखिल होते हैं?
लख्मी
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