Monday, September 20, 2010

हवादार दर



कोई जा रहा है।
कोई मगन है।
कोई टहल रहा है।
कोई खो रहा है।
को झूम रहा है।
कोई झांक रहा है।
कोई बदमाशी कर रहा है।
कोई उदास है।
कोई मना रहा है।
कोई रोमांश में है।
कोई गा रहा है।
कोई सुन रहा है।

इस "कोई" की कोई सीमा नहीं -

लख्मी

2 comments:

Rohit Singh said...

कहां कहां से रुपक पकड़ कर लाते हैं।

Unknown said...

हैलो सर,

पूरी दुनिया में रियाज़ करने के पैमाने बसे हैं।
हर कोई लिखने और सोचने के अवशेष छोड़ रहा है।
शहर अब दौड़ने वाला शहर कहाँ रहा है। ये तो कल्पनाओं की एक तस्वीर बन गया है।

वैसे कभी लगता है कि सोच को अगर खुला छोड़ दिया जाये तो वो कल्पना से भी ज्यादा बदलाव ला सकती है।