कोई जा रहा है। कोई मगन है। कोई टहल रहा है। कोई खो रहा है। को झूम रहा है। कोई झांक रहा है। कोई बदमाशी कर रहा है। कोई उदास है। कोई मना रहा है। कोई रोमांश में है। कोई गा रहा है। कोई सुन रहा है।
पूरी दुनिया में रियाज़ करने के पैमाने बसे हैं। हर कोई लिखने और सोचने के अवशेष छोड़ रहा है। शहर अब दौड़ने वाला शहर कहाँ रहा है। ये तो कल्पनाओं की एक तस्वीर बन गया है।
वैसे कभी लगता है कि सोच को अगर खुला छोड़ दिया जाये तो वो कल्पना से भी ज्यादा बदलाव ला सकती है।
2 comments:
कहां कहां से रुपक पकड़ कर लाते हैं।
हैलो सर,
पूरी दुनिया में रियाज़ करने के पैमाने बसे हैं।
हर कोई लिखने और सोचने के अवशेष छोड़ रहा है।
शहर अब दौड़ने वाला शहर कहाँ रहा है। ये तो कल्पनाओं की एक तस्वीर बन गया है।
वैसे कभी लगता है कि सोच को अगर खुला छोड़ दिया जाये तो वो कल्पना से भी ज्यादा बदलाव ला सकती है।
Post a Comment