एक शहर है
Thursday, January 6, 2011
शरीर तुम हो!
जब कभी उसके बनाये चेहरे होते उसकी बनाई कहानी होती और उसी की सांसो से लिखे शब्द होते। जीवन को दिन प्रतिदिन छिलती जो भौतिक शरीर तुम समझते हो काम-काजी दूनिया में उसका एक महत्वपूर्ण रोल जिसमें कई अनगिनत झांकियाँ प्रवेश कर जाती है।
राकेश
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