Friday, May 13, 2011

किसको क्या चाहिये :

अजनबी ने कहा, "हमें कब लगता है कि किसी जगह को अब बनना चाहिये?”
राजमिस्त्री जी ने कहा, "हम नई जगह जो बना रहे है उसमें लोग अपना समय खुद से देगें और चुनेगें जो की उनकी अपनी शर्तो के साथ होगा। कुछ काम होगा, कला होगी, हुनर होगा, इनको एक सूत्रधार में डालते हुये बनाना होगा। एक – दूसरे से अगर कुछ बन पाया तो समझो की जगह बन गई।"

अजनबी ने पूछा, "नियमित्ता होनी चाहिये ये कब महसूस होता है?”
राजमिस्त्री जी ने कहा, "नियमित तौर पर जो माहौल होगा तो हम उसके मुताबिक जगह में रख सकते हैं। हमें एक मार्किट बनाना होगा नियमित्ता को बनाने के लिये। लोग हमारे पास आयेगें कैसे। के लिये मार्किट बनानी होती है। इसने हमारे बारे मे लोगों पता तो हो, चाहे वे आये नहीं।"

अजनबी ने कहा, "किसी जगह में आजादी के क्या मायने होते है और इसे कैसे जीना चाहिये?”
राजमिस्त्री जी ने कहा, "आजादी का मतलब कई जिन्दगी में बहुत सारे काम है। उस चीज को लाने के लिये हम अपने से अपना एक रुप, ढंग और तरीके से निकलकर ही कर पाते हैं अन्यथा वे तो मनमर्जी हो गया। अब आजादी और मनमर्जी मे फर्क होता है ये कैसे समझाओगे लोगों को आप?

अजबनी ने पूछा, "किसी जगह या समुह में नियम या शर्ते लागु करने से क्या होता है?”
राजमिस्त्री जी ने कहा, "जगह में नियम से जगह निरंतर तो हो जाती है लेकिन शर्ते और नियम मे फर्क है। जैसे हम अपनी शर्ते रखकर काम करते हैं अगर अपने नियम बनाये ले तो काम मिलेगा लेकिन फिर काम, सिर्फ काम होगा। उसमे ये नहीं हो पायेगा की हमें लगे की सामने वाले काम कल तक लटका दिया तो खराब हो जायेगा। तो हम उसे खींचकर आज मे खत्म करते हैं। इसमे शर्ते हो सकती है, लेकिन नियम मे प्यार – प्रेम वाली बात नहीं रहती।"

अजनबी ने पूछा, "अपनी जगह को बनाये रखने के लिये अपनी क्या भुमिका होनी चाहिये?”
राजमिस्त्री जी ने क हा, “ हमें अपने को सब चीज़ों से ऊपर करना होता है, अगर जिद् पर अड़े रहे तो काम खराब, मनमर्जी रहे तो काम खराब, तो इनके बीच मे रहकर काम सोचना होता है। ऐसा आदमी जो बुरा लगने, गुस्सा होने से हटकर, लोगों के साथ मे रहकर कुछ कर पाये।"

अजनबी ने पूछा, "किसी कल्पना की नींव रखने से पहले कौन-कौन सी बातें ध्यान में रखनी जरुरी है?”
राजमिस्त्री जी ने कहा, "हकिकत को समझो, चाहे मानो मत, सही मानो मे तो विकास को सोचों, स्वचलित रहो अपना-अपना मत करो, कला को मदद की नज़र रखते हुए और एक – दूसरे मे देते हुये।"

अजनबी ने पूछा, "जगह में होते बदलावों से आप क्या समझते हो?”
राजमिस्त्री जी ने कहा, "बदलाव ये है की, एक तरीके से आगे बड़ रहा है। जगह का अपनाना और उन लोगों की के बारे मे सोचना (कल्पना) होना है जिनको मैं जानता भी नहीं तो क्या हुआ पर वो मेरे अपने है। अपने देखने को कैसे अपना सकते है। जगह तो हर दिन बदलती है जैसे कैलेन्डर माहिने मे एक बार नहीं बल्कि हर दिन एक नया और ताजा सोच लेकर उतरती है।

अजनबी ने कहा, "जगह अपने आप को परिभाषित करे ये कैसे मुमकिन है?”
राजमिस्त्री जी ने कहा, "कोई चीज़ नहीं करती ऐसा, जगह को पहले आप चाहिये उसके बाद जगह को आप चाहते हैं। जब हम दोनों को ये चाहिये होती है तब कोई जगह बनती है। जैसे मैं अपने को बताऊ तो हम मिस्त्री क्यों बनाये गये क्यों जमीन को हम चाहिये थे। उसके बाद हमे जमीन चाहने लगी। तब जब जगह बोलती है।"

लख्मी

2 comments:

Patali-The-Village said...

बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति| धन्यवाद|

Vivek Jain said...

सुंदर
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com