वो शहर लेकर जाते हैं अपने साथ :
फैक्ट्री से माल लेकर जाने वाले दो आदमी जो इस वक़्त माल लोड कर रहे हैं। उनके साथ चैकिंग करने वाला एक गार्ड भी खडा है। वो माल भरते समय आसपास की निगरानी कर रहा है। फैक्ट्री के भीतर एक हॉल में बैठे सेंकड़ो लोग जो अपने काम में व्यस्त हैं। बाहर से चाय वाला हाथ में केतली लेकर अन्दर फाटक खट-खटा कर आता है।चाय देख कर मजदूरों को दूगनी शक़्ति आ जाती है। चाय तो इनकी चेली है जिसके आते ही रंग छा जाता है।
दूसरी साथ वाली फैक्ट्री में भी यही हाल है लगातार वहा से हाईड्रोजन और थीनर की बू आ रही होती है प्रीटिंग प्रेस मे यही बू 24 घण्टे रहती है। कभी-कभी तो कैमीकल दिमाग पर भी चड़ जाता है।
वहां साथ में गेट के पास एक छोटा गोदाम बना है जिसमें फैक्ट्री से निकला कबाड़ जमा है।। कच्चे माल से बचने के बाद फिर वो उनके किसी काम का नहीं होता। उपलब्ध माल जो जरूरत में आयेगा उसे ही तैय्यार किया जा रहा है। बचे गये माल कि भी जगह है वो खुद उस बची सामाग्री को /काबड़ की तरह बेच डालते हैं।
क्रेन के बड़े बड़े पार्ट इस फैक्ट्री मे रिसाकिल किये जा रहे हैं। हर पार्ट अपने मे मजबूत और बड़ा है। मजदूरो के हाथ वैसे तो पूरा इन पुर्जो को पकड़ नहीं पा रहे थे मगर औजारों से इन्हे सही तरह से बनाने का काम किया जा रहा है।
इंसान और मशीन दोनों के कल के भविष्य की कल्पना को पूरा करने की कोशिश मे लगे हैं। मशीन इंसान के दिमाग की उपज नहीं है वो शैतान की उपज है जो इंसान होने के बीज नष्ट करती जा रही है। हम मशीनो के गुलाम नहीं बनना चाहते इसलिये मशीनों को भी सोचना होगा की वो किस के सातह जीना चाहती है, अकेले उनका जीवन शून्य है।
अगर जीवन मे मशीन अपना काम करना बंद कर दे तो जीवन की कल्पना क्या होगी? मशीन के साथ हमारे क्या सम्बंध है? मशीन कैसे हमारे जीवन को बनाने मे समर्थ है? मशीन कहां पर हमे निश्चिंत करती है?
अगर हम आज औजारो पर निर्भर करते है तो मशीन का खुद अपने आप से सवाल बनता है। कल और आज और आने वाले कल का आधार मशीन से जुड़ा है जिसके बिना आज के युग की कल्पना भी नहीं कि जा सकती। हर मशीन मे पुर्जें होत है। जो मावन की तरह ही शक़्ति रखते है। मगर मानव नहीं होते। तो क्या फर्क है मानव और मशीन मे? सब से पहला साया जब मानव ने औजार बनाया और इस्तमाल किया। उसे तभी से ही मशीन की कल्पना की होगी। यकीनन औजारों से ही मानव ने अपने लिये मशीन सोची होगी। मशीन के पुर्जे जो पूरी मशीन मे काम करते हैं उनका एक वास्तविक रूप है जो हमारे ही आसपास के माहौल से उपजें है। चीजों और जगहों का वज़ूद आज मशीन को भी दिखता है।
क्रैन भी एक पूरा बड़ा औजार है जो तरह तरह के काम के मुताबिक इस्तमाल की जाती है। जहां ये मशीन आज मजदूर को आयाम और आसानी से ज्यादा काम देती है वही आज इंसान के इंसान होने आसार कम करती है। जो मशीन आज हमारे आदान – प्रदान का पहलू बन गई है उसके बिना शायद कोई जीवन की कल्पना सोच कैसे सकते हैं?
मशीन और उसके औजार हम इंसान के बिना चला सकते हैं जिसमें मशीन अपना एक नियमित कंट्रोल बना कर रखती है। मशीन अपने आप चलती रहती है एक बार अगर इन्हे चला दिया जाये तो स्वचलित रूप से किसी के बिना रोके बस चलती जाती है। सही मायने मे इंसान और मशीन के बीच मे बंटवारे वाली भाषा से जीवन को नहीं देखा जा सकता। वे उनके बीच मे उतार चड़ाव को बोलने की जुबान बन जाता है। हम जिस ठोस चीज से खुद की कल्पना कर रहे हैं वो हमे किस ओर ले जा रही है को सोचने के जैसा है ये सवाल। इसके विपरित और विरोध मे सोचना इस दुनियावी कल्पना के सामने खड़े होने से दूर जाना है।
समान लोड हो चुका है। तकरीबन 27 ट्रक भर दिये गये हैं। सुबह के 6 बजे हैं और इनकी आवाज़ पूरे इलाके मे गूंज रही है। सभी एक दूसरे पर गुर्रा रहे हैं। किसी ने खूंटियों से बांधा हुआ हो जैसे। अभी एक थाप लगेगी और ये नंगी पड़ी जमीन पर दौड जायेगे। अपने अक्स और खूशबू बिखरते हुये।
राकेश
1 comment:
अच्छे विचार आप के विचारोत्तेजक लेकिन मशीन न बने तो आज काम कहाँ चलता है ....
भ्रमर ५
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