Wednesday, September 28, 2011

बातचीत टूकड़ों में जीती है

SMS - एक आदमी चौराहे पर जाकर खड़ा हो गया।
SMS - वो खड़ा है या कुछ सोच रहा है?
SMS - वो इधर – उधर कुछ देखता रहा।
SMS - वो किसी का इंतजार कर रहा है क्या?
SMS - वो कहीं पर जाना चाहता है।
SMS - उसके हाथों में कुछ है क्या?
SMS – नहीं, मगर उसकी मुट्ठी बन्द है।
SMS – क्या वो इस जगह में पहली बार आया है?
SMS - पूरी जगह को वो ताक रहा है।
SMS - शायद वो कुछ याद करने की कोशिश में हैं।


वो शख़्सियतें कौन सी होती हैं जिनकी गढ़ना नहीं होती?

SMS – एक आदमी भरे कोहरे में अपने नाख़ून ब्लेड से काट रहा है।
SMS – लोग उसे कैसे देख रहे हैं?
SMS – उसके नाखूनों में से खून निकल रहा है। जिसके बारे में उसे पता है लेकिन उसका अहसास नहीं।
SMS – क्या लोग उसे देखकर कुछ कह रहे हैं?
SMS – उसके हाथ और पाँव देखने से लगते हैं जैसे बहुत सुन्न पड़ गए हैं।
SMS – क्या उसकी नज़र किसी को नहीं देख रही?
SMS – वो कुछ देर के लिये थम गया।


यही जीवन है। - यही जीवन है?

SMS – लाउडस्पीकर पर एलान था की बस्ती 3 महीने में टूट जायेगी।
SMS – ये ख़बर उनके पास कहाँ से आई?
SMS – किसी ने तो दी होगी? एलान वालों के पास तो नेता लोग बोलते हैं।
SMS – क्या उससे पहले कोई नोटिस दिया जायेगा?
SMS – ये जो एलान हो रहा है इसे ही नोटिस समझो।

बातचीत टूकड़ों में जीती है। देखने में दोहराना, निकालना उठाना, रिवांइड में जाना, चुनिन्दा चीज़ों को पेश करना {रुप बदल जाना}, इसे पेश करने में नमी का अहसास, बहुत बड़ी चीज़ का अहसास होना पर टुकड़ो में, उस प्रक्रिया के बाद कि तरगें।

सोच और कल्पना को हम ज़िन्दगी में सोचते हैं। रफ़्तार को सोचते हैं, जिसमें कई छोटे-छोटे सफ़र हर रोज़ साँस लेते और धड़कते हैं। इन ज़िन्दगियों को रोज़ सुबह अपनी जैब में कुछ जरूरत, दिल में कुछ सपने और दिमाग में कोई ना कोई प्लान लिये अपने दरवाज़े से निकालते हैं और उसके हवाले कर देते हैं जो हमारी कल्पना मे हमारे जैसा है - हमशक़्ल नहीं है, हमारे स्वरूप में है।

लख्मी

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