Tuesday, September 27, 2011

दुनिया तो हमेशा से ही मूवमेंट है



अपने एग्ज़िस्टेन्स से भी ज़्यादा की दुनिया तो हमेशा से ही मूवमेंट है, यह देखना होता है की आप्पर ग्रॅविटी का असर कितना है। जैसे कोई उर्दू का महाशय अपनी कविता सुना रहा है, या ऐसा जैसे कोई हलचल मेरे करीब से निकल रही है, या ऐसा जैसे कोई खनक सी बजी हो, या ऐसा जैसे कंपन सी उठी हो, या ऐसा जैसे कोई रिद्दम किसी तैराक की तरह तैरकर मेरे आगे से आहिस्ता आहिस्ता गुजर रही है, मुझे अपनी ओर ले जाने के लिए, जैसे कोई बेहद खूबसूरत लड़की अपने जिस्म को बारिश की हल्की बूँदों में हिला रही है, या फिर वो शांत खड़ी है और मुझे उसका जिस्म हिलता महसूस हो रहा है। वो अब आहिस्ता आहिस्ता से अपने चुस्त पड़ते कपड़ों को अपने बदन से हटाने की कोशिस कर रही है और मेरी आँखें उसके बदन की कंपकपी में खोया सा हुआ है। वो थिरकन जो अपने साथ हर वस्तू, चीज़, लोहा, मिट्टी, पानी, शरीर को अपने रंग में रंगती जा रही है और मैं नकारा सा खड़ा बस ये देख रहा हूँ। थोड़ा घबरा रहा हूँ, थोड़ा ललचा भी रह हूँ, थोड़ा बहक भी रहा हूँ और थोड़ा डर भी रहा हूँ। कई घंटो से एक ही जगह पर खड़े उससे बच रहा हूँ फिर सोचता हूँ की छोड़ दूं ये सब और उसके अंदर तैर जाऊँ, मगर.......

राकेश

2 comments:

Neelkamal Vaishnaw said...

बहुत सुन्दर
आप भी मेरे फेसबुक ब्लाग के मेंबर जरुर बने
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MADHUR VAANI
BINDAAS_BAATEN
MITRA-MADHUR

Ek Shehr Hai said...

नीलकमल वैश्नव जी,
हमने आपके ब्लॉग को बहुत खोजा मगर हमें वे मिला नहीं
कई ब्लॉग हैं आपके तो समझ मे नहीं आया कि आपका का कौन सा है कृप्या करके हमे सही यूआरएक दे दे तो हम पढ़ना चाहेगें