कुछ आवाज़ें उन चेहरों की तरह होती है जिन्हे याद रखने के लिये कभी ख्यालों मे नहीं रखा जाता।
भिन्न होती आवाजें उस ओर जाने के लिये तैयार थी जहां का उन्हे रास्ता नहीं पता था
मेरी उलझने मुझे उन रास्तों का कहती है।
मेरे हर पल जो बितते हुए पलों से टकराते चलते थे
वो उन चेहरों मे बदलने लगे जिन्होनें उन रास्तों का कभी खुद को माना नहीं।
छोटे कागजों के टुकड़े इधर से उधर हवा मे तैर रहे हैं
कभी हवा उन्हे एक ही जगह पर रोक लेती है और कभी अपनी पूरी ताकत के साथ किसी और दिशा मे फैंक देती है।
मैं उन सभी कागज़ों को बीच मे खड़ा हूँ
ये देखने की कोशिश मे की, वे कब तक किसी एक ही जगह पर टिके रहते हैं।
राकेश
3 comments:
सुन्दर अभिव्यक्ति...
आपको धनतेरस और दीपावली की हार्दिक दिल से शुभकामनाएं
MADHUR VAANI
MITRA-MADHUR
BINDAAS_BAATEN
bahut gahan abhivyakti.....
धन्यवाद साथियों.....
लेखन का मज़ा और उसका जीवन तभी उड़ान भर पाता है जब वो मुख ले निकल कर अनेकों मुखों पर चला जाता है।
धन्यवाद
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