वही जानी पहचानी आवाजें कानों में पड़ती जिनके लिये पीछे मुड़ना शायद जरुरी नहीं था और ना ही उन्हे सुनना। आज फूलजहान से छोटी उसकी बहन नूरी का भी रिश्ता तय होने वाला था। मगर उसके चेहरे पर खूशी ही नहीं बल्की खूब खिलखिलाती हसीं थी। जिसको देखकर उसके सारे रिश्तेदार उसकी बलाईयां ले लेते और शायद यही एक काम रह गया था उनके पास। फूलों सुबह से अपनी अम्मी के ट्रंक में से उनकी नई साड़ी पहनने की बात भी कर चूकी थी और "पूरा शिगांर करुगीं...पूरा शिगांर करुगी" की रट भी लगा चूकी थी।
एक तरफ घर में पुलाव की महक घूम रही थी लगभग पच्चीस-तीस आदमियों का खाना तो बनाना पड़ेगा "ये ले आओ...ये ले आओ" के नारे फैले थे। आज तो वैसे भी किसी के पास वक़्त नहीं था शाम की तैयारी थी। उसमें फूलों भी सुबह से चार बार साड़ी पहनती और खोलती लगा रही थी। खिलखिलाई सी वो आज सबसे खूबसूरत बनने की तैयारी में थी। बड़ी बहन की शादी में तो सुध ही नहीं थी तैयार होने की तो अब अपनी छोटी बहन कि शादी में क्यों कसर छोड़े? "अरी फूलों कहां है किसी को खबर है?” ( नीचे से किसी ने आवाज लगाई)
"अरे वो रही ऊपर साडी बाधं रही है। आज तो सजकर ही नीचे उतरेगी ये।" ( किसी में ताना कसते हुये कहा)
क्यों ना सजे मेरी बच्ची उसकी छोटी बहन की रिश्तेदारी हो रही है। मैं बधंवाऊगी मेरी बच्ची की साड़ी।"
कुछ देर के बाद फूलो रेशमी सतंरगी साड़ी में बाहर आई एक लम्बा सा घूघंट और अम्मी साथ में। सीढियां थोड़ी छोटी थी तो अम्मी उसे सम्भाल कर नीचे ला रही थी।
"बेटा घूंघट तो ऊपर कर ले गिर जायेगी।" पर हमारी फूलों अपनी बातों में किसी को जगह देती ही कहां थी। पता है वो क्या बोली?
"नहीं-नहीं अम्मी में घूंघट में ही जांऊगी बडीं बहन ने भी तो किया था शादी में "मैं भी करुगीं" और फिर हसंती हुई नीचे उतरती। अम्मी का ध्यान उसके पैरों पर ही था की कहीं ये फिसलकर गिर ना जाये तो उसको एक-एक सीढ़ी बोल-बोलकर उतार रही थी। अम्मी ने उसे नीचे उतारते हुए कहा था। हर कोई वैसे उसको ना जाने किनकिन बातों से खुश रखने की ही सोचता रहता था। वो बोली थी, "देखा कितनी खूबसूरत लग रही है हमारी फूलो। हटो मैं अपनी बच्ची की नज़र तो उतार लूं जरा।"
सारे के सारे आये रिश्तेदार उसकी तरफ में एक टक लगाये देख रहे थे। घूंघट में जो है वो क्या फूलो ही है या कोई और सीधी खड़ी है। ना कोइ का जोश, ना कपड़ों का चबाना!!!
उनमे से एक ने प्यार भरे स्वर में कहा, “अरे ये घूंघट में हमारी गिट्टी है क्या?”
इस आवाज़ में वो लहज़ा नहीं था जो वो अक्सर गली में सुना करती थी। उसने फौरन अपना घूंघट ऊपर किया आखों में सुरमा, गालों पर लाली और होठों पर लिपिस्टीक!
वो तुरन्त बोली, “मामू जान! मामू मैं कैसी लग रही हूँ लग रही हूं ना! बिलकुल बड़ी दीदी जैसी?”
उनके पास में "हां" के अलावा कोई और शब्द ही नहीं था। अब वो भी बाकी के लोगों के साथ में बैठ गई। जानती हो आसपास में बैठे सभी गली के लोग का तो जैसे ध्यान ही बट गया था। कभी तो वो रिश्तेदारों के ऊपर देखते तो कभी साड़ी में बैठी उस लडकी को। ना जाने क्या देख रहे थे जैसे सब कुछ गुम सा हो गया था। अब मुझे सगाई के लिये जाना था तो मुझे सभी अपने साथ में बैठाकर सारे इन्तजाम कराने के लिये कह दिया। अब सगाई की रसमें पूरी
करानी थी तो सभी ने कह दिया था की हम सारी रसमें फूलो से ही पूरी करायेगें। मैं रिश्तेदारों के बीच में बैठी थी। फूलों को कह दिया था की वो सारे समानों को मेरे हाथ में रखती जाये। तो वो एक-एक समान को देखती रही और मेरे हाथों में रखती गई। वो एक-एक समान को ऐसे देख रही थी की जैसे वो ना जाने क्या हो? पर उसका मन लग गया था उन रसमों में और अपनी कभी ना रुकने वाली नज़रों को घूमाती वो खिलखिलाती उन रसमों को निभाती गई। वो खूब जोर-जोर से हसनें लगी थी।
"मैं तो सब कबूल कर लूँ बस। मेरी फूलो का कहीं कुछ हो जाये। पता नहीं क्या होगा इसका?”
अम्मी उसको देख-देखकर बोले जा रही थी। बस, वो तो चारों तरफ में देखकर हँसे चले जा रही थी। ये नया काम लग रहा था। उसको जो वो किये जा रही थी। वो आज बहुत खुश थी। अपने नये रूप में बस अपनी साड़ी और कंगना को देखती फिर उसे घुमाती। बड़ी झूम रही थी। बस, जब सब कुछ हो गया तो वो सारे लोगों से दूर अपनी उसी खाट पर जाकर बैठ गई जिसपर वो हमेशा बैठकर सबके साथ में खेलती और बातें बनाती थी। उस दिन वो इतना अलग लग रही थी। ना के सभी उसको देखकर वो रोज का उसका थूकना और उसकी चिपचिपाहट को जैसे भूल चूके थे। भाभी भले ही आज बहुत सारे कामों को करते हुए। अपने ये दिन दोहरा रही थी पर आज तो उनके कामों पर कुछ भी ध्यान नहीं जा रहा था। बस, उबकी बातों के ऊपर ही सब कुछ था। वो तो बिलकुल खो ही गई थी। आज ऐसा लग रहा था जैसे की वो आज अपने रिश्ते को बड़े नजदीक से देखकर बता रही हो। वो अपनी बहन के बारे में नहीं पर अपनी गली में बैठी उस लड़की के बारे में बता रही थी जो खाट पर बैठी सब पर थूकती थी। या सबको टोकती थी। पर आज उसी खाट पर वो कुछ और ही थी। उसे कैसे यादों में दोहरा रही थी? नूरी!!
नूरी ने इस रिश्ते की गांठ में फूलो का बचपना भी बांध दिया था।
लख्मी
एक तरफ घर में पुलाव की महक घूम रही थी लगभग पच्चीस-तीस आदमियों का खाना तो बनाना पड़ेगा "ये ले आओ...ये ले आओ" के नारे फैले थे। आज तो वैसे भी किसी के पास वक़्त नहीं था शाम की तैयारी थी। उसमें फूलों भी सुबह से चार बार साड़ी पहनती और खोलती लगा रही थी। खिलखिलाई सी वो आज सबसे खूबसूरत बनने की तैयारी में थी। बड़ी बहन की शादी में तो सुध ही नहीं थी तैयार होने की तो अब अपनी छोटी बहन कि शादी में क्यों कसर छोड़े? "अरी फूलों कहां है किसी को खबर है?” ( नीचे से किसी ने आवाज लगाई)
"अरे वो रही ऊपर साडी बाधं रही है। आज तो सजकर ही नीचे उतरेगी ये।" ( किसी में ताना कसते हुये कहा)
क्यों ना सजे मेरी बच्ची उसकी छोटी बहन की रिश्तेदारी हो रही है। मैं बधंवाऊगी मेरी बच्ची की साड़ी।"
कुछ देर के बाद फूलो रेशमी सतंरगी साड़ी में बाहर आई एक लम्बा सा घूघंट और अम्मी साथ में। सीढियां थोड़ी छोटी थी तो अम्मी उसे सम्भाल कर नीचे ला रही थी।
"बेटा घूंघट तो ऊपर कर ले गिर जायेगी।" पर हमारी फूलों अपनी बातों में किसी को जगह देती ही कहां थी। पता है वो क्या बोली?
"नहीं-नहीं अम्मी में घूंघट में ही जांऊगी बडीं बहन ने भी तो किया था शादी में "मैं भी करुगीं" और फिर हसंती हुई नीचे उतरती। अम्मी का ध्यान उसके पैरों पर ही था की कहीं ये फिसलकर गिर ना जाये तो उसको एक-एक सीढ़ी बोल-बोलकर उतार रही थी। अम्मी ने उसे नीचे उतारते हुए कहा था। हर कोई वैसे उसको ना जाने किनकिन बातों से खुश रखने की ही सोचता रहता था। वो बोली थी, "देखा कितनी खूबसूरत लग रही है हमारी फूलो। हटो मैं अपनी बच्ची की नज़र तो उतार लूं जरा।"
सारे के सारे आये रिश्तेदार उसकी तरफ में एक टक लगाये देख रहे थे। घूंघट में जो है वो क्या फूलो ही है या कोई और सीधी खड़ी है। ना कोइ का जोश, ना कपड़ों का चबाना!!!
उनमे से एक ने प्यार भरे स्वर में कहा, “अरे ये घूंघट में हमारी गिट्टी है क्या?”
इस आवाज़ में वो लहज़ा नहीं था जो वो अक्सर गली में सुना करती थी। उसने फौरन अपना घूंघट ऊपर किया आखों में सुरमा, गालों पर लाली और होठों पर लिपिस्टीक!
वो तुरन्त बोली, “मामू जान! मामू मैं कैसी लग रही हूँ लग रही हूं ना! बिलकुल बड़ी दीदी जैसी?”
उनके पास में "हां" के अलावा कोई और शब्द ही नहीं था। अब वो भी बाकी के लोगों के साथ में बैठ गई। जानती हो आसपास में बैठे सभी गली के लोग का तो जैसे ध्यान ही बट गया था। कभी तो वो रिश्तेदारों के ऊपर देखते तो कभी साड़ी में बैठी उस लडकी को। ना जाने क्या देख रहे थे जैसे सब कुछ गुम सा हो गया था। अब मुझे सगाई के लिये जाना था तो मुझे सभी अपने साथ में बैठाकर सारे इन्तजाम कराने के लिये कह दिया। अब सगाई की रसमें पूरी
करानी थी तो सभी ने कह दिया था की हम सारी रसमें फूलो से ही पूरी करायेगें। मैं रिश्तेदारों के बीच में बैठी थी। फूलों को कह दिया था की वो सारे समानों को मेरे हाथ में रखती जाये। तो वो एक-एक समान को देखती रही और मेरे हाथों में रखती गई। वो एक-एक समान को ऐसे देख रही थी की जैसे वो ना जाने क्या हो? पर उसका मन लग गया था उन रसमों में और अपनी कभी ना रुकने वाली नज़रों को घूमाती वो खिलखिलाती उन रसमों को निभाती गई। वो खूब जोर-जोर से हसनें लगी थी।
"मैं तो सब कबूल कर लूँ बस। मेरी फूलो का कहीं कुछ हो जाये। पता नहीं क्या होगा इसका?”
अम्मी उसको देख-देखकर बोले जा रही थी। बस, वो तो चारों तरफ में देखकर हँसे चले जा रही थी। ये नया काम लग रहा था। उसको जो वो किये जा रही थी। वो आज बहुत खुश थी। अपने नये रूप में बस अपनी साड़ी और कंगना को देखती फिर उसे घुमाती। बड़ी झूम रही थी। बस, जब सब कुछ हो गया तो वो सारे लोगों से दूर अपनी उसी खाट पर जाकर बैठ गई जिसपर वो हमेशा बैठकर सबके साथ में खेलती और बातें बनाती थी। उस दिन वो इतना अलग लग रही थी। ना के सभी उसको देखकर वो रोज का उसका थूकना और उसकी चिपचिपाहट को जैसे भूल चूके थे। भाभी भले ही आज बहुत सारे कामों को करते हुए। अपने ये दिन दोहरा रही थी पर आज तो उनके कामों पर कुछ भी ध्यान नहीं जा रहा था। बस, उबकी बातों के ऊपर ही सब कुछ था। वो तो बिलकुल खो ही गई थी। आज ऐसा लग रहा था जैसे की वो आज अपने रिश्ते को बड़े नजदीक से देखकर बता रही हो। वो अपनी बहन के बारे में नहीं पर अपनी गली में बैठी उस लड़की के बारे में बता रही थी जो खाट पर बैठी सब पर थूकती थी। या सबको टोकती थी। पर आज उसी खाट पर वो कुछ और ही थी। उसे कैसे यादों में दोहरा रही थी? नूरी!!
नूरी ने इस रिश्ते की गांठ में फूलो का बचपना भी बांध दिया था।
लख्मी
1 comment:
hummmm! sahi hai ji.
http://manoharchamolimanu.blogspot.in/2013/05/blog-post.html
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