Friday, October 4, 2013

पोशाक

पोशाक धूंधली रात में दिखने वाली एक रोशनी की तरह हैं। 
एक टोकरा की तरह जिसमें चूपके-चूपके दिमाग में कोई ख्याल बसा हो। 
दृश्य को अदृश्य भीड़ में कहीं खो देना। 
रोशनी का ऐसा नाकाब जिसे उतारने बिना शरीर नहीं दिखता। 
कोई ऐसी छवि जिसका वक़्त पर काबू ना रहे। छवि के जिन्दा होने के अहसास को उसकी मुमकिनताओं में जीने की ललक देता है।
रूप के अनेको किस्म जो अपने साथ सपनों का काफला लाते हैं।

पोशाक क्या शरीर ढकता है या उसे दिखाता है? ऐसी पोशाक जिसमें से कोई मुर्दा शरीर फिर से जिन्दा होकर बाहर आ गया हो। जिसमें शरीर से बाहर आकर एक आकृति दिखाई देती है जो नाच रही है।

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