मौस्की
के आलम यह सिलसिला है उन
तमाम लोगों के संजोग और विलाप
का जो किसी को बुलाने और भागने
मे भरोसा नहीं रखते। उनके लिये
खुद को नज़रों मे लाने के समान
जीते हैं।
बेनज़र और बेइफ्तियार
बनकर जीना इनके
लिये मौकों
के पैमाने जैसा
है।
यहीं
- कहीं
इनकी इतनी
महक है कि जीवन
की सभी धाराओं में
हम जाये भी नहीं तो भी
उनके चित्र बना
सकते हैं।
जैसे -
समंदर
मे उतरे बिना उसकी गहराई का
पता कर लिया
हो। उसे भाप कर,
उसका
एहसास करके,
उसके
छु कर,
उसे
सुनकर और उसे महसूस कर के।
जिंदगी
कि किताब
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