कहानी भाग दो
अगले दिन दोहपर को जब वो स्कूल
पंहुचता है तो देखता है कि जहां पर रेहड़ी लगी होती है वहां पर सब कुछ बिखरा पड़ा
है। हर तरफ छोले - कुलचे, कचोडियां, टिक्की - समोसे सब कुछ जमीन पर पड़ा है। मगर किसी की भी रेहड़ी वहां पर नहीं है और
ना ही रेहड़ी वाले वहां पर है। बिखरे हुए समानों मे से सड़क पर घूमते बिखारी और
कुत्ते चुन चुनकर खा रहे हैं। और कुछ स्कूल के लड़के वहां पर पड़े में से कुछ ऐसा
बीन रहे हैं जो उनके काम का हो। भीड़ लगी है। लड़कियों के स्कूल की छुट्टी हो चुकी
है। लोग कुछ देर रूकते और फिर बिना कुछ कहे चल देते। वो देखता है कि किसी को कोई
फर्क नहीं है। जो लोग यहां इस सड़क के किनारे रोज दिखते थे। अपना काम करते थे।
लोगों का पेट भरते थे वो आज सभी गायब है और किसी को कोई फर्क ही नहीं है। मोन्टू
यह सब देखकर रूहांसा सा हो गया। वो वहीं पर बैठ गया औ रोने लगा। उसने भी जमीन पर
पड़े समानों से कुछ बिनना शुरू किया। मसालो के डिब्बे, अखबारों के टुकड़े जो प्लेट की तरह इस्तमाल होती थी, चाकू, नेपकीन, साबूत नींबू सब कुछ उठाकर उसने वहीं एक पेड़ के नीचे रख
दिया और यहां - वहां पर नज़र मारने लगा। लोगों से
पूछने लगा की यह सब क्या हुआ और रेहडी वाले कहां गये। कोई बताता कि यहां पर किसी
ग्राहक से लड़ाई हो गई वो और लड़के ले आया सब कुछ तोड़ गया। कोई कहता दो सांड आपस
में लड़ रहे थे उन्होने किया यह सब। वो सबकी सुनकर यहां वहां देखता तो कहीं पर भी
कोई रेहड़ी नहीं दिखी। उसने फिर एक रोते हुए आदमी से पूछा "अंकल क्या हुआ?” वो रोते हुए बोले "अरे बेटा एक
गरीब आदमी अपनी मर्जी से कोई काम भी नहीं कर सकता। सरकार नहीं चाहती की हम खाये
पिये।" मोन्टू के समझ मे नहीं आया। वो उस
रोते हुए आदमी को देखता रहा। वो फिर से बोला "कमेटी आई थी। सब कुछ तोड़ गई और बचा - कुचा ले गई।"
वो आदमी फिर से रोने लगा। मोन्टू
चुपचाप स्कूल आ गया।
स्कूल में आज 14 नवम्बर मनाये जाने की तैयारी चल रही है। प्रार्थना वाली
जगह पर ही सभी टीचर, प्रिंसिपल और बच्चे खड़े हैं। वो भी
पीछे से उसमें जुड़ जाता है। प्रिंसिपल सबसे पूछ रहे हैं कि सब क्या बनना चाहते
हैं? वो जिसकी तरफ हाथ करते उस बच्चे को
बताना होता कि वो क्या बनना चाहता है और क्यों? कईओ की ओर प्रिंसिपल का हाथ गया। सभी बोल रहे हैं "टीचर, डाक्टर, एक्टर, वकील, साइनटिस्ट, पुलीस" ज्यादातर जैसे सभी को पहले से ही मालूम है कि उन्हे क्या बनना है।
प्रिंसिपल सबके सपने पर "शबाशी" दे रहे हैं। इस बार उनकी उंगली मोन्टू पर जाती है।
मोन्टू सहमा सा खड़ा होता है। सभी विद्यार्थियों की ओर देखता है। सभी मोन्टू को
घूर रहे हैं। वो थोड़ा रुकता है फिर बोलता है "मैं रेहड़ी लगाने वाला बनूंगा।" सभी उसकी ओर देखकर बहुत जोरों से हंसते हैं। टीचर जी के चेहरे पर भी
मुस्कान आती है। प्रिंसिपल साहब कुछ नहीं बोलते। बस, पुछते हैं "क्यों बेटा?” मोन्टू कहता है "वो जब खाना
बनाते हैं तो लोग अपनी यादों मे चले जाते हैं। अपना पेट भरते हैं और कोई ना कोई
बात को याद करते हैं। वहां पर वो भी आते हैं जो जानते हैं और वो भी जो नहीं। सब
साथ में खाते हैं। मैं भी ऐसी जगह बनाना चाहता हूँ।"
सभी उसको देखते रह जाते हैं।
प्रिंसिपल साहब कुछ नहीं कहते। बस, हाथ के इशारे
से उसको बैठने को कहते हैं। फिर उनका हाथ किसी और के ऊपर जाता है। वो कहता है "सीआइडी" प्रिंसिपल के
मुंह से निकलता है "शबाश" यहीं चलता रहता है। आज का दिन उदासी में बीत जाता है। मोन्टू घर आ जाता है।
खमोश और सुस्त। शाम को जब पिताजी आते हैं तो उनसे पूछता है "पापा ये कमेटी क्या होती है?” उसके पिताजी समझ नहीं पाते। वो उसकी ओर देखते है और पूछते हैं "तुम ये क्यों पूछ रहे हो बेटा?” मोन्टू कहता है "आज स्कूल के
बाहर कमेटी आई थी और सारे रेहड़ी वालों को ले गई। उनका समान भी तोड़ गई। सब कुछ
बिखेर गई।" उसके पिताजी यह सुनकर कहते हैं "बेटा कमेटी सरकार की ऐसी योजना है जो सड़क पर लगने वाले
अवैध कार्यों को उठा सकती है। तोड़ सकती है। ताकि उन्हे खाने वाले बिमार ना पड़े।
मरे नहीं। स्ट्रीट फूड से कई बिमारियां होती हैं। उन्हे रोका जाता है। ताकी लोग
तंदरूस्त रहे।" मोन्टू को यह सब समझ में नहीं आया। वो
बोला "मगर पापा मैंने देखा है कि वहां से
खाने वाले तो कभी बिमार नहीं पड़ें। वो तो रोज आते थे। फिर क्यों हटाया उन्हे वहां
से?” पिताजी बोले "बेटा उन्होनें दुकान लगाने की परमिशन नहीं ली होगी? इसलिये तोड़ दी।" मोन्दू बोला "मगर पापा तोड़ी क्यों? पहले पूछते कि लोग बिमार तो नहीं पड़े। लोगों से पूछती। जब वो कहते तो हटा
देती। क्या इसको रोक सकते हैं रेहड़ी वाले?” पिताजी ने कहा "बेटा जो
रेहड़ी लगाते हैं वो ना अपने इलाके में लगाने के कुछ पैसे देते हैं। जो अवैध होता
है। और जैसे ही पैसा देना बंद कर देते हैं तो ये होता है।" मोन्टू के ये तो समझ में आ गया था की उनके साथ जो हुआ है वो गलत है मगर ये
समझ में अभी तक नहीं आया था कि ऐसा हुआ क्यों?
हर दिन अब मोन्टू उसी जगह पर जाकर
बैठने लगा। कई दिन यूहीं बीत गये। मोन्टू वहां पर बनते माहौल को देखने रहता। सबकुछ
लगभग वैसा का वैसा ही रहता। आवाज़ें, आना-जाना, गाड़ियों का शोर और लोगों का वहां पर रूकना और कुछ समय देना। मगर वो खूशबू
गायब हो चुकी थी जो उसे अपनी ओर खींचती थी। मोन्टू का मन अब पढ़ाई में बिलकुल नहीं
लगता था। बस, दोस्तों से स्कूल में मिलते मिड्डे-मील के ऊपर वो बातें करता। कहता "मालुम है इस सब्जी को कैसे बनाते हैं? मालूम है इसमें क्या - क्या डालते हैं?” उसके दोस्त
उसकी सूरत देखते जाते।
लख्मी
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