Friday, May 31, 2019

इंतज़ार कक्ष


कोई एम्बूलेंस की आवाज़ नहीं। धूप के साथ जैसे इंतज़ार करते बिमारों के रिश्तेदार अब ख़ुद भी सुस्ताने लगे हैं। छुट्टी का दिन है। बड़े डाक्टरों के बिना चलते अस्पताल का इंतज़ारिया कमरा भी बिना किसी रोकटोक के सुस्ता रहा है। छोटे डाक्टर भी दिखना बंद है। अस्पताल के कर्मचारी ही यहां से वहां भागते दौड़ते दिख रहे हैं। कम्बल, शॉल, पतली रजाइयां व पतली चादरों से देखती आंखे उन्हे ही निहार रही हैं। शायद जैसे कोई ख़बर उन्ही के हाथों मिल जाये। कमरे में इतनी कुर्सियां नहीं है जितना की जमीन पर अपने बिस्तर लगाये लोग पड़े हैं। कमरे के बाहर तीन से चार स्ट्रेक्चर खड़े हैं। उनमें से तीन भरे हैं। हाथ में अपना ही गुलूकोस पकड़े कोई लेटा हुआ है। उसके बगल में खड़ी एक औरत उससे कुछ पूछ रही है। बाहर स्ट्रेक्चर हैं और कमरे के अन्दर कई बिमार लोग। कोई कमर में गर्मपट्टी बंधाये कमर की तकलीफ से परेशान है तो कोई पैशाब की जगह एक नली पकड़े लेटा है। कोई मुंह को कपड़े से धका हुआ है तो कोई आंख के दर्द से परेशान है। ये वेटिंगरूम ही इनका अपना वार्ड है और बिस्तर अपना बेड। बस, यहां पर कोई बेड नम्बर नहीं है। बस, अपने पर्चे अपने सिरहाने पर लेटे है। खुद से अपना बेड तलाशते व बनाये ये लोग डाक्टर का इंतजार करते हैं और यह भी मालूम यहां कब तक रहना है। हां, मगर यह जरूर पता है कि यहां कबसे है। बस, ख़ुश हैं कि इलाज हो रहा है। पैसा बच रहा है। यहां पर कोई मिलने का टाइम नहीं है। जब मर्जी रिश्तेदार आ जा सकते हैं। अस्पताल के कर्मचारी भी इससे संतुष्ट दिख रहे हैं।

यह वेटिंगरूम दिल्ली से बाहर से आये लोगों से भरा है। गुड़गांव, फरिदाबाद, दादरी, बलम्भगड़, गाजियाबाद लोगों से तो बाहर एमरजेंसी के सामने की खाली जगह में दिल्ली में ही रहने वालों की भीड़ जमा है। पुरानी दिल्ली, नई दिल्ली, बेग़मपुर, कटवारिया सराय और खानपुर। यहां पर एक जन से जब यह मालुम किया तो वह बोला कि पुरानी दिल्ली वालों का तो यह अपना अस्पताल है। वे तो यहां पर बुखार, पेट दर्द, कब्ज़ और तो और एसीडिटी की दवाई भी लेने आ जाते हैं। यह बात उन्होने बोली और जोर जोर से हंसने लगे। शायद यहां पर उनका अपना कोई नहीं था। अभी फिलहाल धूप इस जगह में चली रही है। ख़त्म होने के साथ आगे की ओर बड रही है और लोग उसके साथ साथ अपना बैठने का ठिकाना तलाशते व बनाते लोग आराम कर रहे हैं। यह जगह बिमारों से भरी हुई है। एम्बूलेंस, चौकीदार की सीटी, भारी स्ट्रेक्चर खींचने आवाज़ जैसे यहां के लिये आम सी आवाज़ है और उसके साथ साथ किसी के रोने, दर्द में चिल्लाने की भी। लेकिन फिर भी इस आवाज़ के होते ही सभी उसी ओर देखने लगते हैं। वेटिंगरूम में एक दूसरे से अपनी बिमारी / तकलीफ बांटते लोग इसी में संतुष्ट दिखे की उनके जैसे यहां कई हैं। एक दूसरे की छुट्टी की खबर सुनते ही उनको यह लगता दिखता की अब उनको भी जल्दी ही छुट्टी मिल जायेगी।

लेकिन आज सरकारी छुट्टी होने से कईओ की जैसे छुट्टी केंसल हो गई।




लख्मी 

1 comment:

अनीता सैनी said...

Anita sainiशुक्रवार, 31 मई 2019 को 2:52:00 pm IST
जी नमस्ते,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (01 -06-2019) को "तम्बाकू दो छोड़" (चर्चा अंक- 3353) पर भी होगी।

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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।

आप भी सादर आमंत्रित है

….
अनीता सैनी