Monday, August 24, 2009

परछाइयों तले




परछाइयों तले हम जीवन की अनेक कशमकशो से भिड़ते रहते है। कभी हमारी चाहतें कुचल जाती है और कभी ये सम्पन्न हो जाती है फिर इस सम्पन्नयता के बाद जीवन का पहिया चलता है और लोगों में जीने की जिद् दोबारा से ऊजागर होती है। ये जिद् कभी नस्ट नहीं होती और न कभी पैदा होती है। वो तो खूद ही किसी न किसी शख़्स को तलाश लेती है।

राकेश

2 comments:

प्रज्ञा पांडेय said...

perchhayiyon tale aapke saare chitra bahut sunder lage bahut arthpoorn hain .. bahut badhaayi

Ek Shehr Hai said...

THANK YOU..
Hum aap ko apne anubhav or pranao se is tareh doniyao ki jhakiya dikhate rahege r nay mahollo se avgat karate rahege. r hum chahatehai ki aap is sambandh ko barkrarrakhiye r ek shehr hai ko padhte rahiye.
rakesh