Friday, March 12, 2010

कल्पना के उस सागर में।





वो रास्ते जो वापस नही लौटते वो तो चले जाते है कल्पना के उस सागर मे जहा कोई इन्हे रोके न ।वो हर किसी को अपनी पनह दें। और मौसम की ठन्डक भी दें।


राकेश

1 comment:

Udan Tashtari said...

चित्रकारी बढ़िय है.