हमारे जीवन की रफ्तार और ठहराव का इतना जोर हमपर रहता है कि हर पल और उसके अंदर बनी हलचल इन दोनों के नाम कर दी जाती है। जीवन के ऐसे दो बड़े मटके जिनका मुँह बहुत बड़ा है और पेट भूखा। हमारे पास अपने चलने और बैठने को सोचने के लिये और क्या शब्द हैं? जिनको जीवन में किसी खास भिड़ंत से खुद के साथ छेड़ा जा सकता है।
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