खुले अवसर की तरह हमारे बीच का रिश्ता दिखाता है।
उसे जानने और उसकी परख से मुखातिब जब हम होते हैं तो क्या दिखता है?
जीवन का सफ़र कई चीजों और उनसे जुडे सदंर्भो से मिला-जुला ढ़ाँचागत है।
जिसको हू-ब-हू से हटकर उसके होने के दृश्य उपजी कल्पना और सोच के ठिकानों को समझा जा सकता है।
आज का समय जो अभी के हाल को व्यक़्त करता है वो अस्थिरता के सामने होता है।
वो बाद के पहलूओं को भूलकर आने वाले का प्रचार जाने वाले का दर्द और इस दर्द से जुड़े वर्तमाण की तरलता के अहसासों को ठोस करता है।
घर में दर्द को जीने का जुबान क्या है? जिसमें डूब कर भी जीने का मज़ा सूख और अमन से जीने से ऊपर उठ जाता है।
दर्द का कई जुबान है वो एक जुबान में बयाँ नहीं किया जा सकता।
हम दर्द जीते हैं, पीते हैं इसमे रहकर भी इसी को असीम में ले जाते हैं।
दर्द का कहानी विरासत से जुड़ा है वो सिर्फ अभी की उपलब्धी नहीं है।
घर वो है जिसमें कहीं होकर अपने चिन्ह को छोड़ जाने के समान है।
और अपने बाद क्या छोड़ गया और क्या बनाया का कोशिश।
राकेश
3 comments:
nice
बढ़िया भावपूर्ण!
bahut khub
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