Tuesday, June 1, 2010

बहसी -

कलाकार और कलाकारी क्या है? इसके बीच मे कितना गेप है?
हम मानते हैं कि जो बन गया वो कलाकारी है मगर फिर जो बनेगा वो क्या है?

कलाकार और उनके कुछ बनाने के अंतराल में कई बहस और भिंड़त का खेल होता है जिसमें समय की अवधि और उसमे बनने टूटने वाले कई अनेकों अवशेष इस बात के गवाह बनते हैं की एक कलाकार और उसके चीज़ों से विरोध में जो पिरोया जाता है वो उसकी खास अभिव्यक़्ति का अहसास होता है। असल मायने में कलाकार खुद का बहसी होने का नाम है। ये बहसी होना क्या है? इस बहस के अन्दर जितना प्यार और स्नेह का घोल मिला होता है, उतना ही रिश्तों और उनसे टकरार का खेल भी शामिल होता है। चीज़ों की परख अगर खुद के मेल से परे हैं तो उसका वज़न सवालों और जवाबों का अनुभूती शामिल होता है।

देखा जाये तो, किसी चीज़ में अपना जीवन देना उसको अपनी पौशाक नहीं बनने देना। ये उस अभिव्यक़्ति की भांति होता है जिससे खुद के चेहरे और स्वभाव को तोड़ा और बनाया जाता है। अनेकों अभिव्यक़्तियों से जन्मी कग़ारें इसको भरपूर जीने के लायक बनाती है। वे अहसास जो किसी अन्य जीवन को भी अपना सारर्थी बनाकर जी लेगा और उसके अपना स्वरूप बना लेगा का जीवन बहुत मायने पूर्ण अहसास जगाता है।






कलाकार और कलाकारी के मध्य में किसी चिन्ह का खेल है।

लख्मी

No comments: