जब भी घर में मेहमान आते।
पुराने बर्तन मांजकर उन्हे परोस दिये जाते॥
मैं हर रोज़ पूछता घर में - नये क्यों नहीं निकालते इस वक़्त में?
तो मांजने को सभी जीवन कह जाते॥
हर रोज़ मेरी माँ मांजने में लगी रहती
जब तक चेहरा नहीं दिख जाता, उसे घिसती रहती।
मैंने एक बार पूछा उनसे "तुम बर्तन को कहाँ तक मांजती हो?
पुराने दिन को मिटाती हो या कोई नयी परत चढ़ाती हो?"
वो हँसकर अक्सर बोलती "न पुराने को मिटाती हूँ, न नयी परत चढ़ाती हूँ
मैं तो बस बर्तन को ताज़ा बनाती हूँ॥"
एक दिन मेरी माँ ने ही मुझसे पूछा, "तू जब अपने दोस्तों से मिलता है तो हाथ क्यों मिलाता है?
पुराने दिन की याद दिलाता है या कुछ नया रंग चढ़ाता है?"
सवाल बहुत आसान था और जवाब भी बिलकुल साफ था
न कुछ याद दिलाना था इसमें और नया रंग चढ़ाना था
किसी अहसास को छुअन से ताज़ा बनाना था
हर तरफ हाथ मिलाना रिश्ते को गाढ़ा करने के जैसा महसूस नहीं हो रहा था
ऐसा लगता जैसे - समाजिक का अंत और बौद्धिक को जिन्दा करना लग रहा था।
लख्मी
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