Thursday, February 10, 2011
इस यात्रा में कोई विलम्ब नहीं है
भीड़ क्या है? - भीड़ के बीच में बनते दृश्य किस ओर ले जाते हैं?, भीड़ को किस तरह से चिंहित किया जा सकता है?, समूह क्या है? "आपसी होना" और "निजी होना" को ये कैसे सोचता है?, समूह की तस्वीर क्या है?, समूह किस ओर ले जाता है?, इंडीव्जूयल होना क्या है?, मांसिकता और शारिरिकता में ये कैसे सोचा जाता है? अकेला होना कटा हुआ होता है या कट पैदा करना?
अगर हम इन तीनों स्थितियों के छोड़ दे तो क्या बचता है? कई लोग महज़ शरीर जो इतनी फोर्स लिये एक साथ बड़ते और निकलते हैं कि इनको अपने एक पल में समझ पाना किसी तीरों के झूंड मे निकलने के समान होगा। हम क्या सोच सकते हैं इस स्थिती में? मैं भीड़ के बीच मे था। भीड़ के सामने था। भीड़ के करीब था। इस "बीच" के दौर में खुद को टकराव मे लाना और भीड़ में महफूज़ियत को सोचने के सम्मूख रखना किसी बहस के समान होता है। मुझे लगा ये न तो "टकराव" में होती है और न ही "महफूज़ियत" में। ये एक भिंड़त हैं।
भीड़ के बीच में हर कोई इस भेदने की क्षमता को लिये चलता है। ऐसा लगता है जैसे हर कोई किसी महीम और अननोन फोर्स से इस दायरे की पकी-पकाई फोर्स के कमडंल को भेद रहा है। ये फोर्स का कमंडल किसी अकेली फोर्स को न्यौता देता है। ये भेदना - चौंकना, झटका, अचानक वाले ऐसे दृश्य उभारता है जिनको याद रखना और भूल जाना दोनों का एक समांतर रूप है। "गेप" जहाँ अपनी परख को पुख्ता करता है वहीं पर "भेदना" किसी न पहचानने वाले मेप बनाते की कोशिश करता है। मान लेते हैं जैसे - एक ही झटके मे कई सारी वॉयव्रेश्न, चेहरे, शरीर और अनेको किस्म की आवाज़ें हमारी ओर आती है। अपनी एक बहुत तेज फोर्स के साथ तो हम किस ओर निकलते हैं?
सफर करते हुए एक सवाल दिमाग मे उभरा : कौनसे ऐसे दृश्य है जो याद मे रह जाते हैं जिनमें समय का वो पल है जो चिंहित नहीं किया जाता? जिसको दोहराया नहीं जाता और जो वापस कभी लौटेगा भी नहीं? इस सवाल को सोचते हुए महसूस हो रहा था की "लौटना" इतना जरूरी क्यों है? याद मे इसलिये नहीं ठहर गया कि वे लौटने का अहसास करवायेगा। बल्कि शायद इसलिये भी हो सकता है कि उस ओर कभी नहीं लेकर जायेगा।
लख्मी
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