ये एक छोटा सा कमरा था जहाँ कोई भी आता और अपना कोना या जगह पकड़कर बैठ जाता। यहाँ पर सबसे ज्यादा बच्चे थे। शायद ये उन्ही का कमरा था जिसमें बड़ो का कोई काम नहीं था। सारे बच्चे एक लाइन मे बैठे थे। अपनी-अपनी कॉपी निकाले। वहीं पर उनके सामने एक औरत बैठी थी जो इन सबकी टीचर थी। इतने मे वहाँ पर एक और बच्चा आया जो एक दम नंगा था। वो आया और उन्ही बच्चों मे आकर बैठ गया। उसके पास कुछ भी नहीं था। सभी बच्चे उसे देखकर हँसने लगे। टीचर सबको शांत करते हुये बोली, “बेटा इतनी गर्मी पड़ रही है और तुम नंगे घूम रहे हो। लू लग गई तो बिमार पड़ जाओगें। जाओ कुछ पहनकर आओ।"
वो बच्चा बस, हँसे जा रहा था। अपने हाथों को अपने टांगों के बीच मे रखकर वो मुस्कुराता जाता।
“बेटा जाओ और कुछ पहनकर आओ। मम्मी को बोलो कुछ पहना दे।"
वो दूसरे की किताब मे लग गया। उसे नहीं कुछ लेना था की वो कहाँ पर बैठा है और यहाँ पर आने के लिये उसे क्या करना चाहिये? वो दीवार से टेग लगाकर बैठ गया और सबको वहीं से देखने लगा।
“अगर तुम हमारे साथ घूमने जाओगे तो चलों जल्दी से जाओ और कपड़े पहनकर आओ।"
“नहीं टीचर जी मुझे अभी काम पर जाना है। मैं मटकापीर के पास मे खड़ा होकर लोगों से दुआ माँगता हूँ। मैं तो रोज़ वहाँ पर ऐसे ही जाता हूँ। मेरी माँ और मैं वहाँ पर जाते हैं।"
“दुआ मांगते हो लोगों से मतलब?”
“मतलब लोगों से पैसे मांगता हूँ। 100 रूपये मांगकर लाता हूँ। सारे पैसे अपनी माँ को दे देता हूँ। तब मेरी माँ मुझे पाँच रूपये देती है। उसकी मैं खूब चीज़ खाता हूँ। ये अपने दोस्त को भी खिलाता हूँ।"
इसके बाद मे सारे सवाल या तो बंद हो जाते हैं या फिर वो सवाल पैदा होते हैं जिनका इस दुनिया में कोई काम नहीं होता। टीचर जी के पास कहने और सुनने को कुछ नहीं था। वे क्या कहती? जब कुछ नहीं बचा कहने तो पूछा, “क्या तुम स्कूल नहीं जाते?”
लख्मी
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