सुनसानियत का अहसास करवाते वर्दीदार सैनिक किसी की नज़र को पकड़ने की कोशिश में शरीर को एकटक बनाये हुये खड़े है। सब कुछ कंट्रोल मे हैं, सब कुछ कंट्रोल मे करने की आंख तेजी से कहीं अटकी हुई है। कुछ तलाशने की कोशिश से बाहर जैसे उसने अपने किसी टारगेट को चुन लिया है। लाइन लम्बी है, दूर तक जाने के अहसास से बनी है, लाइन मे अनगिनत वर्दीदारी खड़े होने के आसार है और अनेकों के सामने खड़े होने के भी। ना जाने कितने चेहरे अपने आपसे से बाहर होकर यहां पर इसी लाइन मे घूसने की कोशिश मे होगे।
उनपर भारी, उनकी लाइन में खड़ा, उनकी स्थिरता से आंख को चुराता हुआ, चेहरे को छुपाने से ज्यादा चेहरे को दिखाने की कोशिश में, ब्लैकवॉल को खुद मे समा ले रहा है। पीछे छुपी और बिछी "ब्लैकवॉल" जहां वर्दीदारी सैनिकों को पूर्ण तरह से देखने का और अपना दाव दिखाने का मौका देती है वहीं पर वे उस इलाके को छुपा लेती हैं जिसके समक्ष इस तैयारी का शामियाना लगाया गया है।
स्थिरता से रची गई कट्रोंल करती गली को डकमगाता एक चेहरा। वे जो महज़ चेहरा ही नहीं है। वे जो चेहरे के जैसा है, वे जो पूरा शरीर है. मगर वे जो शरीर के जैसा है। बदन पर कपड़े इसानी, वे जो इसान जैसा है, दिखता है मगर वो एक गधा। हाथ में एक नोट् फ्लैग पकड़े वे भी इसी स्थिरता का वासी है। पर स्टीकनेश से भरपूर नहीं। वे कभी देखने वाले का हो जाता सा लग रहा है तो कभी किसी सजायेवक्ता जैसा। शरीर की निठाल होती सक्रियेता। उस तरफ पूरी तरह ताला लगा रही है जहां पर तन तक खड़े, हाथों मे हथियार लिये सैनिको को देखकर नज़र बजाकर छुप जाने का खेल होता है। लगता है जैसे सामने खड़े होने की ताकत देता ये 'गधा' पूरे पावर के अभिनय को खुद मे उतार लिया है।
किसी शांत दिखती लकीर की तरह बनते चेहरे / अनेको अनुमानों को खोल दे रहे हैं। कुछ देर पल जैसे खामोश रहता है। चेहरा अपना रूप ले रहा है। कभी दांय तो कभी बांय होता लगता है जैसे हर पल में एक पाउज़ ले रहा हो। हर बार पाउज़ का विभिन्न रूप और वज़न है।
घंटो अगर यूंही खड़े रहने पर भी दिन गुजर जाये तो दिखने वाली छवि अपने साथ चल देगी। वे जिसमें हर देखने वाला खुद को आसानी से पिरो सकता है। या पिरोये बिना वे जा ही नहीं सकता। जैसे कोई एक सवाल जिसे तलाशा जा रहा है वे – इस रूप मे ढाल देगा। पावर अभिनय है, डर है, स्टिकनेस है, मगर उस स्थिरता में जो तैयारी होने को डरावना करती है। 'गधा' उस तैयारी को उसने स्टेज दे दिया है।
लख्मी
उनपर भारी, उनकी लाइन में खड़ा, उनकी स्थिरता से आंख को चुराता हुआ, चेहरे को छुपाने से ज्यादा चेहरे को दिखाने की कोशिश में, ब्लैकवॉल को खुद मे समा ले रहा है। पीछे छुपी और बिछी "ब्लैकवॉल" जहां वर्दीदारी सैनिकों को पूर्ण तरह से देखने का और अपना दाव दिखाने का मौका देती है वहीं पर वे उस इलाके को छुपा लेती हैं जिसके समक्ष इस तैयारी का शामियाना लगाया गया है।
स्थिरता से रची गई कट्रोंल करती गली को डकमगाता एक चेहरा। वे जो महज़ चेहरा ही नहीं है। वे जो चेहरे के जैसा है, वे जो पूरा शरीर है. मगर वे जो शरीर के जैसा है। बदन पर कपड़े इसानी, वे जो इसान जैसा है, दिखता है मगर वो एक गधा। हाथ में एक नोट् फ्लैग पकड़े वे भी इसी स्थिरता का वासी है। पर स्टीकनेश से भरपूर नहीं। वे कभी देखने वाले का हो जाता सा लग रहा है तो कभी किसी सजायेवक्ता जैसा। शरीर की निठाल होती सक्रियेता। उस तरफ पूरी तरह ताला लगा रही है जहां पर तन तक खड़े, हाथों मे हथियार लिये सैनिको को देखकर नज़र बजाकर छुप जाने का खेल होता है। लगता है जैसे सामने खड़े होने की ताकत देता ये 'गधा' पूरे पावर के अभिनय को खुद मे उतार लिया है।
किसी शांत दिखती लकीर की तरह बनते चेहरे / अनेको अनुमानों को खोल दे रहे हैं। कुछ देर पल जैसे खामोश रहता है। चेहरा अपना रूप ले रहा है। कभी दांय तो कभी बांय होता लगता है जैसे हर पल में एक पाउज़ ले रहा हो। हर बार पाउज़ का विभिन्न रूप और वज़न है।
घंटो अगर यूंही खड़े रहने पर भी दिन गुजर जाये तो दिखने वाली छवि अपने साथ चल देगी। वे जिसमें हर देखने वाला खुद को आसानी से पिरो सकता है। या पिरोये बिना वे जा ही नहीं सकता। जैसे कोई एक सवाल जिसे तलाशा जा रहा है वे – इस रूप मे ढाल देगा। पावर अभिनय है, डर है, स्टिकनेस है, मगर उस स्थिरता में जो तैयारी होने को डरावना करती है। 'गधा' उस तैयारी को उसने स्टेज दे दिया है।
लख्मी
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