Wednesday, May 16, 2012

एक लेख पर मेरे साथी का कोमेंट

झलकियों के बीच नाच

पिछली रात अशौक ने रजनी के चेहरे पर कई रंग लगा दिये। रजनी को इन सबका पता भी नहीं था। वे मदमस्त नींद में मुस्कुराती हुई सो रही थी। अशौक ने रंगो से उसके चेहरे को पूरी तरह से रंग दिया था। लाल, पीला, हरा और नीले रंग से इतनी लकीरें खींच दी थी की लगता था कई सारे इंसान के साथ रजनी आज बिस्तर में है।
(रंगो से इंसान को कैसे तशबीह किया डियर? कुछ अटपटा सा है कि सिर्फ एक रंग एक शख्स? कइ रंग तो कइ शख्स का अंदाज़ा?? कैसे?)

दूसरे दिन रजनी उठी तो हर रोज़ की तरह वो सबसे मिलने के लिये अपने कमरे से निकली। जो भी उसे देखता तो हंस पड़ता। वे समझ नहीं पाती। जो भी उससे बात करता तो बड़ी मुस्कुराहट के साथ। मगर रजनी अपने काम मे पूरी तरह जुटी हुई थी। वे जिस जिस के पास मे जाती वो ही उसे देखकर चौंक जाता। उसे करीब से जानने वाले उसपर हंसते और दूर से जाने वाले पूरी तरह से चौंक गये थे।
(कमरे से बाहर निकलर घर में ही रही? रजनी अपने काम मे बुरी तरह जुटि हुइ थी मतलब किस काम में? घर के? गर घर के तो पुरा जानने वालो और दुर से जानने वाले इसमें थे?? कैसे?)

सब की हंसी का कारण बनी रजनी वापस अपने कमरे में पहुँची। खुद को संवारने के लिये जैसे ही शीशे के सामने पहुँची वे खुद चौंक गई और फिर जोरो से हंसी। (यहां तो रजनी खुद को दुर से जानने वाली भी लगी और करीब से जानने वाली भी- यहां रजनी ने दुर और पास से जानने का सेपरेशन तोड़ दिया है। इस लाइन से शुरु कर सकते हो टेक्सट) काफी देर तक वे खुद को बस, देखती रही। रंगो को प्यार से छूती वे और भी ज्यादा बिगाड़ रही थी। जैसे खुद का ही चेहरा बिगाड़ रही हो। कुछ देर आइने के सामने खड़े होने के बाद में रजनी उसी हालत में फिर से घर के अंदर घूमी, अब की बार वो उन लोगों के पास मे गई जो उसे देखकर हमेशा नराज रहते थे तो कभी गुस्सा हो जाते थे। उनके सामने वे खड़ी रही।(यहां रजनी के किरदार के बारे में कुच समझ नही आता..मतलब जिनसे दुखी थी उनके पास गइ? नहीं ना! तो फिर येह फिर से वैसे ही जाना समझ आता है। पर उसने लोगो का सलेक्शन किया कि किसके पास जाना है क्या करता है देखों!) उन बच्चों के पास मे गई जो उसकी डांट फटकार पर भी हंसते थे। उन्हे डराने के लिये।

फिर दोबारा से अपने कमरे मे आइने के सामने आई और रंग को मलने लगी।


हर साल नाच मण्डली में हिस्सा लेती है। हिस्सा लेने से पहले वे कहां रहती थी व क्या करती थी। मण्डली का इससे कोई लेना देना नहीं होता था। शायद मण्डली का हर बंदा इसी रूप से नवाजा गया था। वे क्या छोड़कर आयी से ज्यादा वे इस बार क्या लेकर आयी है। नाच जमने से पहले यह जानने की रात हर साल जमती।

यह रात कई रोज की रातों से भिन्न होती। थकने और दुरूस्त होने से पहले की रात। (bahut khubsurat – yeh har kisi ki har raat ke liye ban jati hai) कभी याद नहीं रहती। हर कोई दिन के शुरू होते ही क्या रूप धारण करके इस बार बाहर निकलेगा को रचता, बोलता और उसमे खो जाता। ऐसा मालुम होता की जैसे हर कोई वो बनकर निकलना चाहता है जिसमे वो खूबसूरत लगे, दुरूस्त लगे और यादगार लगे और कभी कभी तो होता की वे वो बनने की कोशिश मे है जिसे वो पहली बार खुद पर ट्राई करेगा।

एक पूरी रात उस किरदार मे ढ़लने के लिये होती। एक दूसरे को गहरी निगाह से देख सभी उस किरदार का अहसास करते। जैसे सपाट चेहरे पर उस किरदार का रंगीला चेहरा बना रहे हो। एक ही रात मे सभी अपने चेहरे मे दिखते चेहरे को पोत उन राहों पर निकल जाते जो अब भी अपने ही जैसे को तलाश रही होती है। उन पुते रंगीले चेहरे के पीछे के चेहरे को सभी ताकना चाहते और खोचना भी।

वे आज तैयार थी अपने चेहरे की शेप के भीतर किसी और को बसाये। (hme` kohish karni hogi esi lines se bachne ki jisme lage ki han hum isme kuch keh gaye....kyunki kisi aur ko isme basaye kise? Taiyar thi kaise pata chala? Nikal jata hai...aur esi lines se hume lagta hai ki dikh raha hai sab...gar by chance yeh line tumhara bhai pade to use smjh ajayega ki kya kehne ki koshish hai? Hutar pe nach pehle pehla bhag tumhara bhai bhi padkar smjh sakega kyun? Kyunki usme padne wale ke sath likhne wala bhi maza le raha hai....nazar ajata hai...ese maze se likhna hoga)


रूप वापस लौटते हैं। किसी समय को साथ लेकर। वे समय जिसे जवाब देना चाहते हैं या वे समय जिससे बहस करना चाहते हैं। समय जिसमें रूप खो गये थे, जाने नहीं जा रहे थे, नकार दिये जा रहे थे। समय उन पड़ावो को रिले करता चलता है जिसमें फिर से ये उम्मीद होती है कि वे रंग ले सकते हैं। 

maza nahi aya dear.....

धन्यवाद
मेरे साथी

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