Wednesday, May 23, 2012

मार्ग किसी अद्वश्य रेखा

तेजी से किसी की ओर जाने की और बढ़ने की प्रक्रिया की लाईन का किस कल्पना से रिश्ता होता है? जीवन विस्तार से अलग है या जीवन विस्तार के लिये कुछ रचना करने की समझ देता है? इन कारणों का विरोध धीमी गती के साथ बॉडी में उतरता है और किसी तेजी से बनने और बसने वाली जगह की तरह उठने की कोशिश करता है। 

मैं किसी ऐसी जगह की दिवार पर वो रोज बैठता हूँ जहां से निकलने वाला हर कोई कुछ पल के लिये तो किसी के साथ हो ही जाता है। कभी बैठे रहने से तो कभी साथ मे रास्ता पार करने से। किसी को नहीं मालूम इस बार उनके साथ मे कौन होगा। लेकिन इस बात का असर जरूर उनके चलने मे होता है कि कोई न कोई उनके साथ मे जरूर रहेगा। कितने क्षण के लिये नहीं मालूम, किस रूप मे नहीं पता, किस भाषा से नहीं जाता पर कोई होगा जरूर। हर रोज़ उस जगह पर ये बातें होती है। 

क्या है वो?  कौन है वो? मैं क्या हूँ? मैं कौन हूँ? जो सामने है वो कौन था।? जो मेरे पास है वो कौन है? कल्पना का मार्ग किसी अद्वश्य रेखाओं में चले जाता है।  वो किसी जड़ से जुडे होने पर अपना बीच का रूप नहीं दिखा पाता मगर उनके सांस लेने का पताचलता है। कपड़ों पर अनगिनत निशान और जगह-जगह बने छेदों में से निकले धागे जो हवा से हिलते हैं। उसका वक़्त किस तरह की अदाकारी करता है।   नए के साथ जुड़ा हुआ है। उस बने खुले रास्ते पर रोजाना किसी का खुद को मरम्मत की आवश्यकता होती है। काल्पनिक जीवन विस्तार के एक साधन मात्र जैसा हो सकता है। क्या ये विस्तार जीवन मे कोई छवि गेरता है? लगातार कोई जैसे किसी की नकल करने में मग्न है। रास्ते का शोर उस की खामोशी को तोड़ने में सफल नहीं हो पाता है। हासिल क्या होता है, उसका छुट क्या जाता है? इस कल्पना के बारे में या इसे खोजने के बारे में मिली कहानियों में कुछ छुपा रह जाता है। शायद, वो अभिव्यक़्ति जिस का मिटना असंम्भव है। उसकी शक्ल में कभी खुद का धूंदला सा चेहरा नजर आता है तो कभी खुद में खेलती सर्सारहट महसुस होती है। वो अलौकिक शक्ति किसी का हस्ताक्षर है। अपने आप में जो सौगात के रूप में वापस करने के लिए जीवन की यात्रा देती है। 

राकेश

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