एक शहर है
Wednesday, October 2, 2013
वक्त
समय के बहाव में हर चीज की भरपाई समाई होती है। बेआकार सा दिखता समय अपने से कई आकारों को बुनता चलता है। समय की कोई छाप नहीं है। समय को जीते हम अपने चिंहो को समय की छाप मानते हैं।
1 comment:
संतोष पाण्डेय
said...
क्या बात है. वक़्त की हकीकत।
October 11, 2013 at 11:49 AM
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क्या बात है. वक़्त की हकीकत।
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