“अम्मा तुम जल्दी चाय दिया करो,रोज़ की तरह देर लगाती हो।"
आज सुबह चाय की गर्माई के साथ अख़बारों का खुलना शुरु हुआ और मजदूरों ने अपने हाथों में अख़बार लेकर उनमें खो जाना पसंद किया। चाय की महक अब तक के माहौल को महका चुकी थी। इतने में एक बुजुर्ग औरत आई और अपने हथेली में 10-20 चाय के ग्लासों को चबूतरे पर लाकर रख दिया।
आज के दिन वहां आए लोग किसी बडे काम की चर्चा में लगे थे। सेवाराम ने अपनी जेब से पुराने विजीटिंगस कार्ड को निकाला और किसी का मोबाईल नम्बर खोजने लगा। चाय अब अम्मा ला चुकी थी। जरा चाय का जायका लेने के बाद सेवाराम ने अपने राजमिस्त्री को किसी काम के बारे में समझाना शुरू किया। बीच में खान भाई जोर से हंसे,”कमाल है भाई यार हमारी बीवी ठीक हुई तो सेवाराम की बीवी बिमार पड़ गई। साला मौसम भी मजाक करता है।" दोनों ठहका मार के हसें।
फिर गम्भीर होकर सेवाराम ने कहा, "सुन जरा गमले बनाने का काम कर लेगा अच्छा पैसा मिल जायगा।"
सेवाराम के सामने बेठा राजमिस्री सोच में पड़ गया।
"पथर के टुकडों को एक साथ लगा कर रख देना बस, काम हो जायेगा।"
"ना बाबा ना मेरा काम इतना बड़ा नहीं है, अरे कोई हैल्पर ले लियो। फिर चलता काम कर देना।
बबलू उनके पास से चाय खाली ग्लास उठाकर दूकान के अन्दर चला गया। उसकी दुकान ज़्यादा बड़ी नहीं थी मगर आराम से एक बारी में लगभग 20 लोगों से भर जाती। दोपहर 4 बजे का टाईम मजदूरों के आने - जाने को देखते बीत गया। सब अपनी थकान उतारने यहां आते हैं। पसीना यहां की हवा से सूखता है। ये बबलू बोला।
फिर चाय के बर्तन में पानी भरने लगा उसे बात करने की फुर्सत नहीं होती मगर पता नहीं क्यों वो मेरे से बात कर रहा था। मैनें इस का कारण पुछा तो वो बोला, "आप की बोली हमारे नजदीक वालों की लगती है। इसलिये बिना कुछ जाने बात करना अच्छा लगा।" मेरे पास जबाब देही नहीं थी। बबलू मेरी बोली को कैसे भाप गया। वो बिहार का मैं यूपी का रहने वाला। शायद कोई मेल मिल गया हो। वो ये बता रहा था की शहर में आय उसे 40 साल हुए वो अपने पिताजी के साथ सिर्फ घूमने आया यहां की हवा उसे अच्छी लगी। तब ओखला पर जमीन नापी जारी थी। कुछ हद तक 1970-75 के दौरान की बात। यह अच्छी तरह से उसे कुछ याद आ रहा था। सड़क और रेल से तब से ये ऐरिया जुड़ा हुआ है। जब यहां पास में हवाई अड्डा बनाने की बात भी सुन्ने में आई थी। मगर ऐसा नहीं हुआ। क्योंकि यह राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के केंद्र में स्थित माना जाता था। नेहरू प्लेस जैसे व्यापार जिलों और कनॉट प्लेस इस से दूर नहीं हुआ करते थे और यहां तक बाहर देशों से आये अंतर्देशिय कंटेनर निगम भी स्थापित हुआ। कंटेनर टर्मिनल भी है।
चाय की दुकान पर अब मुझे लगा की जर्नलनॉलेज की बात हो रही है। मेरे दिमाग में ये 5 किमी में फैला ऐरिया घूमने लगा।
सितम्बर 2010 के अंत तक, ओखला भी दिल्ली मेट्रो नेटवर्क के में आ जायेगा। ये घोषणा बहुत पहले सोची गई थी। पूरे औद्योगिक क्षेत्र फेज़ -1, 2 में मूल रूप से उद्योग के हैं लेकिन हाल ही में डीएलएफ, इंडियाबुल्स सनसिटी और आज जैसे कुछ निजी बिल्डरों ने कई क्षेत्र में परियोजना शुरू की है। दक्षिण बहुराष्ट्रीय कंपनियों के कारण ये दिल्ली के एक प्रमुख इलाकों में माना जाता है। इस क्षेत्र में बहुतों की रुची है। जहां अपनी उद्दोगिक जगह का अपना एक जीवनशैली है। जहस से कान करके वापस मजदूर अपनी जीवन के खास समय को यहां जीते हैं। चाहे वो किसी चाय की दुकान में बैठकर गप्पे मारना हो या ख्याली अन्दाज। ये मानने में कोई हर्ज नहीं वो सोचते हैं अपने और अपने जीवन के बारे में।
राकेश
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