शहर अब कहीं जाने और वापस लौटने के लिये नहीं रह गया है।
शहर कुछ पाने और छोड़ देने के लिये नहीं रह गया है।
इस बहाव को किसी पकी निगाह से देखना अब नहीं रह गया।
बस, इस 'नहीं' के बीच रहकर शहर की परिकल्पना में जीना ही जिन्दगी है। जो हर रोज, हर समय ट्रांसफर हो रही है और नयेपन की तलाश में रहने वाला शख़्स अपने जीने के तरीके की सिमायें लाघने की कोशिश कर रहा है। वे शख़्स कहीं जाना चाहता है, कुछ बनाना चाहता है। और वो तलाश जो उसके होने से ही है मगर उसकी ना मौजूदगी उस जगह को भव्यता में गुम जाती है। उसके अनेकों टूकडे, अनेकों लोगों में बदले जा रहे हैं। वे अपने शरीर से बाहर हो जाने के लिये लुफ्त होता जा रहा है। मगर शहर अपने 'नहीं' को नहीं छोड़ना चाहता।
शहर कुछ पाने और छोड़ देने के लिये नहीं रह गया है।
इस बहाव को किसी पकी निगाह से देखना अब नहीं रह गया।
बस, इस 'नहीं' के बीच रहकर शहर की परिकल्पना में जीना ही जिन्दगी है। जो हर रोज, हर समय ट्रांसफर हो रही है और नयेपन की तलाश में रहने वाला शख़्स अपने जीने के तरीके की सिमायें लाघने की कोशिश कर रहा है। वे शख़्स कहीं जाना चाहता है, कुछ बनाना चाहता है। और वो तलाश जो उसके होने से ही है मगर उसकी ना मौजूदगी उस जगह को भव्यता में गुम जाती है। उसके अनेकों टूकडे, अनेकों लोगों में बदले जा रहे हैं। वे अपने शरीर से बाहर हो जाने के लिये लुफ्त होता जा रहा है। मगर शहर अपने 'नहीं' को नहीं छोड़ना चाहता।
2 comments:
बधाई सुंदर भाव सुन्दर अभिवयक्ति।
http://ankushchauhansblog.blogspot.in/
बहुत सही कहां। सुन्दर अभिवयक्ति।
http://myindiamypride47.blogspot.in/
Post a Comment