एक रात की बात है ।
अब हम कहाँ जाये ? ये बात उन्हे सताती रही।
हम चारों एक पेड़ के नीचे आकर खड़े हो गये ।जिसके पास से हमें गर्मी महसूस हो रही थी।
वो चारो वही थककर बैठ गयें ।
वहाँ जो आटे की बोरी का कट्टा पड़ा था उसमें से ही गर्मी नीकल रही थी वो वही हाथो
को फेला कर तापने लगें।
काली रात के सायें मे उन्हे दिन की धूप की गर्माई का अहसास हो रहा था।
शायद कुत्ता भी अपने को उनके बीच महफूज़ समझ रहा था।
तड़के ही कुत्ता उठ खड़ा हुआ और उनके बीच से नीकल भागा ......
राकेश
2 comments:
i think maine ye kahin aur pehle padhi hai, kisi blog par,
हैलो दोस्त,
ये कहानी सदियों से सफ़र कर रही है। ये वे कहानी है जो दादा - दादी और लोगों की ज़ुबान पर इसलिये रहती है ताकि वे कभी किसी माहौल को बनाने से पहले सुनाते रहे हैं। हमने अपने बीच मे एक प्रक्रिया चलाई। जिसमें हमने कोशिश की, के इन कहानियों को लिखे और इनपर ग्राफिक्स के साथ खेल करके इनको कोई रूप दिया जाये।
बिना लेखक के घूम रही ये कहानियाँ चित्र के जरिये और कैसे सुनने वालो के दरमियाँ अपनी जगह बना सकती है।
आपको याद आये तो आप भी ऐसी कहानियों को बाँट सकते हो हमारे साथ।
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