Tuesday, December 22, 2009

लम्बा जीने की चाहत

हर आदमी लम्बा जीना चाहता है। लम्बा जीने के लिए वो कई छोटे-छोटे पैमाने बनाता है। वे पैमाने क्या होते हैं? - दिन की दिनचर्या में आने और मिलने वाली कुछ समाजिक घटनायें, दोस्तों का मिलना, उनके बिछड़ने के बाद का गम, काम पर निकलने की जल्दी, किसी को छूने की कोशिश और इन अनेको पैमाने बन जाने के बाद वो खुद से पूछता है, “अपने लिए क्या करूँ?, लम्बा जीने के लिए राहें कैसे तैयार करूँ?”

बिन सवालों के जीना लगातार बेरूखी की ही तरह सही लेकिन उन्हे अपनाता जाता है। खुद से कुछ पूछ लेने के बाद – अपनी दौड़ को थोड़ा धीमा करने की चाहत में खुद से कुछ- कुछ मिलने की तमन्ना बनाने लगता है। बस, दो राहों को जीवन की गाड़ी बना लेता है। "काम और रिश्ते" ये दो पटरियाँ लम्बे जीवन की बुनाई करने में उसका सहयोग करने लगती है। "काम" – जो उसे मन्जिल-मन्जिल करवाते रटवाते कहीं दूर के अंधविश्वास में जीने चाहत देता है।

लम्बा जीवन खाली इसलिए ही नहीं होता जो उसे किसी चमक की तरफ आकृषित करता हो बल्की तंज़ तो इस बात का होता है कि मन्जिल पाने की जूनून में लम्बे अंधेरे को चीर कर उस पार जाया जाये। उस पार जाने की कोशिश मे वो कुछभी करने की चाहत बना लेता है। वो एक ऐसा पार है जिसे कोई नहीं देख पाया है आजतक – हाँ बस, अंदेशे लेकर जीना ख्याइशें बड़ा देता है।

लो - फिर तैयार हो गया लम्बे जीवन का उद्देश्य।

यहाँ इस दौर में आकर वो फिर से कुछ पूछता है, “खुद के लिए क्या जमा किया? कहीं खुद का आसपास अकेला तो नहीं रह गया?”

यहीं से होता है "तलाश" शब्द का जीवन में जन्म।
तलाश किसी अन्देखी शख़्सियत की
तलाश अपने विरोधी की
तलाश एक सहपाठी की
तलाश किसी सुनने वाले की।

लम्बे जीवन की कल्पना में 25% यानी खुद के जीवन का एक चौथाई भाग उस तलाश में खुद को झौंकने को उत्तेजित करता है।

लम्बे जीवन में नये पड़ावों का एक अंदरूनी झुकाव।

लख्मी

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